मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी संपन्न





कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी संपन्न

कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्त्वावधान में रविवार दि. 19 अक्तूबर को हिंदी प्रचार सभा परिसर नामपल्ली में क्लब की 266वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ |

क्लब अध्यक्ष डॉ.अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया कि इस अवसर पर डॉ.देवेन्द्र शर्मा (अध्यक्ष), अवधेश कुमार सिन्हा (मुख्य अतिथि), विजय विशाल चांडक (विशेष अतिथि), डॉ.अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) मंचासीन हुए |  सहसंयोजक ज्योति नारायण ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की | मीना मूथा ने क्लब का संक्षिप्त परिचय दिया | डॉ.मिश्र ने उपस्थित सभा को दीपावली पर्व की शुभकामनाएं दी | प्रथम सत्र में देवा प्रसाद मयला ने अपनी पांच वुनिन्दा रचनाओं का पाठ किया | ये रचनाएँ थीं वंदिनी, अनभिव्यक्त, जानो जरा, बयार लीला, स्वतंत्र | प्रस्तुत रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ.रमा द्विवेदी ने कहा कि लिखते-लिखते ही रचनाओं में निखार आता है, शीर्षक अच्छे लगे, शब्दों के चयन में गंभीरता व सावधानी का ध्यान रखें तो मयलाजी की रचनाएँ और प्रगल्भ हो सकती है | ज्योति नारायण ने कहा कि हम बार-बार अपनी रचनाओं को पढ़े, सुधार करते तराशते जाएँ | ‘स्वतंत्र’ में मृत्यु उपरांत के दृश्य को सहेजता से उकेरा है | जी.परमेश्वर ने कहा कि लिखते समय हम उस प्रवाह में बह रहे होते हैं | रचना को 8-10 दिनों के बाद फिर से पढ़े, तब हमें पुन: उसमें कोई सुधार की गुंजाइश महसूस होती है | डॉ.सीता मिश्र ने कवि के प्रयास को सराहते हुए कहा कि गलतियां होना स्वाभाविक है तभी तो सुधार होगा | ‘स्वतंत्र’ रचना अच्छी लगी | डॉ.मदनादेवी पुकारणा ने कहा कि रचनाकार तेलगुभाषी है, संस्कृत शब्दों का प्रयोग ध्यान आकर्षित करता है | वाक्य विन्यास पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कहकर कवि को साधुवाद दिया | लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि रचनाओं में विचार, अभिव्यक्ति है | अनुकांत कविता में यदि शीर्षक न हो तो कविता ही समझ में नहीं आती | ‘बयार लीला’ में तुक के कसाव की आवश्यकता है | शब्द चयन पर ध्यान केन्द्रित करते हुए शिल्प की साधना पर अभ्यास की आवश्यकता पर जोर दिया | विजय विशाल ने मिथकों के चयन बढ़िया बताते हुए उसे बस मांजने की जरुरत पर बल दिया | कविता में लय टूटनी नहीं चाहिए | डॉ.मिश्र ने कहा कि कवि के पास विचार है, स्त्रोत है, प्रवाह में कहीं न कहीं गतिरोध है | रचनाओं में मातृभाषा का प्रभाव नजर आता है, शब्दकोष की सहायता अवश्य लेने का परामर्श दिया | अवधेश सिन्हा ने रचनाओं में शिल्प के लड़खड़ाने की बात करते हुए कहा कि मयला छोटी उम्र से ही हिंदी में लिखते आ रहे हैं अत: उसमें अब परिपक्वता की आशा की जा सकती है | अध्यक्षीय बात में डॉ.देवेन्द्र ने कहा कि पाठक की दृष्टि से कविता में तारतम्य की आवश्यकता है | अनुकांत में लयबध्दता के साथ प्रवाह होना चाहिए, कठिन शब्दों के स्थान पर सरल शब्दों का प्रयोग करें, कम ही लिखें पर अच्छा लिखें कहकर कवि को आशीष दिया | सत्र का संचालन मीना मूथा ने किया |

तत्त्पश्चात दुसरे सत्र के आरंभ में आगामी 1 नवंबर को स्व.श्री दुर्गादत्त पाण्डेय के रचनासंग्रह ‘मुस्कान’ के विमोचन के सन्दर्भ में सभा को जानकारी दी गई | प्रस्तुत सत्र में विनीता शर्मा की अध्यक्षता एवं गुरुदयाल अग्रवाल के आतिथ्य में तथा भंवरलाल उपाध्याय के सफल संचालन में कविगोष्ठी संपन्न हुई | इसमें आशीष नैथानी, दर्शनसिंग, जी.परमेश्वर, सूरजप्रसाद सोनी, विजय विशाल, भावना पुरोहित, ज्योति नारायण, संपतदेवी मुरारका, हेमांगी ठाकर, सरिता गर्ग, डॉ.रमा द्विवेदी, संतोष कुमार रजा, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, अवधेश कुमार सिन्हा, देवाप्रसाद मयला, डॉ.अहिल्या मिश्र, मीना मूथा, गुरुदयाल अग्रवाल, भूपेन्द्र मिश्र, जुगल बंग जुगल आदि ने काव्यपाठ किया | डॉ. रमा ने क्लब सदस्यों को जन्मदिन-विवाह दिन की बधाई दी | मीना मूथा के आभार के साथ गोष्ठी का समापन हुआ |

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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