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प्रपत्र वाचन करती हुई संपत देवी मुरारका
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प्रमाण पत्र स्वीकार करते हुए संपत देवी मुरारका
डॉ.हबिबुलो रजबोव के साथ संपत देवी मुरारका
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डॉ.किरण वत्सला (अध्यक्ष) के साथ संपत देवी मुरारका
विजय पार्क होटल में संपत देवी मुरारका
तमिलनाडु
हिंदी साहित्य अकादमी-चेन्नै का द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन संपन्न
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : उद्घाटन भाषण
आज 10 जनवरी 2014 - विश्व हिंदी दिवस को सायंकाल चेन्नै में
त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन सत्र संपन्न हुआ |
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पुदुचेरी के महामहिम
लेफ्टिनेंट गवर्नर, श्री वीरेंद्र
कटारिया ने कहा कि साहित्य, संस्कृति और सभ्यता
हमारी विरासत है | साहित्य और जीवन का संबंध शास्वत है | आज ऐसा वक्त आ गया है कि
कर्मठता और दायित्वबोध के स्थान पर पुरस्कार और राजनीति का बोलबाला है | जनसेवकों
में कर्तव्यबोध होना चाहिए |
उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष के समय की चेतना को पुनः जगाना होगा | और यह काम कलाकारों, साहित्यकारों
और भाषा प्रेमियों से ही संभव होगा | हिंदी का प्रचार प्रसार आवश्यक है क्योंकि यह
देश बहुभाषिक है | देश भक्ति का जज्बा पैदा करने के लिए हिंदी का प्रचार प्रसार
जरूरी है |
महामहिम ने जोर देकर कहा - Don't Criticize anybody or any political system. Human values are
totally degenerated today. Authors and Artists are opinion builder's. By your
Literature, Songs, Culture, Language you can influence the feeling of the young
generation. We should not surrender. We shall rise up.
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : सांस्कृतिक संध्या
संपन्न
तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के
त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन की संध्या संस्कृति और कविता के
नाम रही | वैष्णव कॉलेज की छात्राओं ने मनमोहक भरतनाट्यम प्रस्तुत किया | पारंपरिक
नृत्य रचनाओं के अतिरिक्त मंजु रुस्तगी ने महादेवी वर्मा के गीत 'प्रिय मैं एक पहेली हूँ'
की भावपूर्ण प्रस्तुति ने प्रेक्षकों को सम्मोहित कर दिया है |
इसके बाद कवि सम्मेलन शुरू हुआ |
इतने सारे कवि, कवयित्री! एक से
एक बड़े भी और एक से एक नए भी | संचालन ईश्वर करुण जी ने किया और मंच पर आसीन हुए
अध्यक्ष के रूप में प्रो. ऋषभ देव शर्मा के साथ तजाकिस्तान के प्रो. हबिबुलो रजबोव, डॉ. परिणिता घोष, संपत देवी मुरारका, डॉ. अजाज़ हुसैन आदि | डॉ. सुधा त्रिवेदी, आचार्य भागवत दुबे, डॉ. गायत्री शरण मिश्र मराल, ईश्वर चन्द्र झा
करुण, वर्षा बरखा, सरदार मुजावर, डॉ. गार्गी और
डॉ. ऋषभ देव शर्मा की रचनाओं ने विशेष प्रशंसा बटोरी |
चेन्नै में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : पुस्तक
लोकार्पण प्रथम सत्र
आज चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन
का दूसरा दिन है | सुबह 10.30 बजे पहला सत्र
शुरू हुआ | यह सत्र प्रमुख रूप से पुस्तक लोकार्पण के लिए समर्पित था | इस सत्र
में कविता, कहानी, निबंध, आलोचना, नाटक आदि विधाओं की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ | तजाकिस्तान
से पधारे डॉ. हबीबुलो रजबोव, जापान से पधारी
डॉ. तोमोको किकुची, डॉ. केवल कृष्ण पाठक, डॉ. चंद्रमोहन, डॉ. ललिताम्बा, डॉ. राजवीर, डॉ. पी. के.बी., डॉ. कन्हैया त्रिपाठी तथा डॉ.
तनूजा मजूमदार मंचासीन थे |
मंचासीन अतिथियों ने हिंदी साहित्य
के बहुआयामी कोण (प्रो. निर्मला एस. मौर्य), हिंदी के
ऐतिहासिक उपन्यासों में समकालीन सरोकार (डॉ. पी. नज़ीम बेगम), रामकुमार वर्मा का नाट्य रंग एवं प्रयोग (डॉ. बी. संतोषी
कुमारी), ललित निबंध संग्रह (श्रीराम
परिहार), शब्द आबद्ध (डॉ. वर्षा पुणवटकर), दलित कविता का यथार्थवादी परिदृश्य (डॉ. दोड्डा शेषुबाबू), हेमंत में पवन
(डॉ. वत्सला किरण) तथा पनघट पनघट प्यास (डॉ. श्याम मनोहर सिल्होठिया) आदि पुस्काओं
का लोकार्पण किया | रविता भाटिया के कविता संग्रह का लोकार्पण सायंकालीन सत्र में
डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने किया. ईश्वर करुण की पुस्तक छुप नहीं है ईश्वर को पहले
दिन उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि ने लोकार्पित किया ही था |
चेन्नै में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : विचार सत्र 2
'आज की
प्रगतिशील नारी का पुरुषों के प्रति नजरिया' विषय पर
केंद्रित विचार सत्र की अध्यक्षता डॉ. चितरंजन मिश्र ने की | डॉ. एन.
लक्ष्मी अय्यर, डॉ. ललिताम्बा, उषा जायसवाल, शौरिराजन, डॉ. पद्मप्रिया, डॉ. संदीप पाठक तथा गुर्रमकोंडा नीरजा मंचासीन थे
| इस सत्र में कुल 30 प्रपत्रों
का वाचन हुआ | सबने तैयारी के साथ अपने अपने विचार प्रकट किए |
अध्यक्षीय भाषण में डॉ. चितरंजन
मिश्र ने कहा कि साहित्य की दुनिया मूल्य निर्माण की दुनिया है |. साहित्यकार अपनी
भाषा और अभिव्यक्ति के माध्यम से मनुष्य के दिमाग को ऐसा बदलते हैं जिससे कि वह
मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हो | मनुष्य और समाज को अलग करके देखना संभव नहीं है |
समाज संस्कारों से संचालित होता है | आज के परिप्रेक्ष्य में संस्कारवान होना आवश्यक
है | उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मानसिकता में बदलाव आना जरूरी है |
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : विचार सत्र 3
भोजन अवकाश के उपरांत.
तीसरा सत्र 'कामकाजी
माताओं के बच्चों की समस्याओं' पर
केंद्रित रहा | इस सत्र की अध्यक्षता जापान से पधारी डॉ. तोमोको
किकुची ने की. डॉ. उषा महाजन, डॉ. केवल कृष्ण पाठक, डॉ.
शशिप्रभा वाजपेयी, डॉ. सरदार मुजावर, डॉ.
अनिता नायर तथा डॉ. सुंदरम मंचासीन थे | इस सत्र में कुल 20
शोधपत्रों का वाचन हुआ |
उषा महाजन ने कहा कि कामकाजी स्त्रियों को Flexible Time देना चाहिए ताकि वे बच्चों
की अच्छी परवरिश कर सके, अच्छी Guidance दे सकें |
माता-पिता के बीच यदि संबंध अच्छे हो तो घर-परिवार का वातावरण भी अच्छा होगा और
बच्चे भी स्वस्थ परिवेश में पलेंगे-बढ़ेंगे | स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे के Competitor बनकर नहीं बल्कि सहयोगी
बनकर रहना होगा |
इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए तोमोको
किकुची ने कहा कि जापान और भारत में बहुत समानताएँ हैं विशेष रूप से कामकाजी
माताओं के बच्चों की समस्याओं के संदर्भ में | उन्होंने एक सर्वे के हवाले से यह कहा कि जापान की आधी
जनसंख्या (5 करोड) महिलाएँ हैं - कामकाजी
महिलाएँ | उन्होंने कहा कि एक सार्वजनिक व्यवस्था होनी चाहिए ताकि बच्चों को माँ
का भरपूर प्यार मिले |
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : विचार सत्र 4
आज के चौथे सत्र का विषय रहा 'आज के संदर्भ
में नारी के प्रति पुरुषों की मानसिकता' | इस सत्र के
अध्यक्ष थे डॉ. गंगा प्रसाद विमल. डॉ. शौरीराजन,
डॉ. बालकृष्ण शर्मा रोहिताश्व, डॉ. ललिताम्बा, डॉ. एन. लक्ष्मी, डॉ. साई प्रसाद, संतोष परिहार, सुशीला सिंह और
संपत देवी मुरारका मंचासीन थे | इस सत्र में कुल 19
शोधपत्र प्रस्तुत किए गए |
अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉ.
गंगा प्रसाद विमल ने कहा कि यह बहुरंगी विमर्श है | पुरुष की स्त्री- दृष्टि को
देखने के लिए साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर ठोस निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, परंतु ऐसे प्रयास बहुत कम मिलते हैं | उन्होंने यह कहा कि
स्त्री-पुरुष के बिना युग्म सृष्टि का निर्माण नहीं हो सकता है | इस समूची सृष्टि
में हम लोग कैद हैं | हम समझ नहीं पा रहे हैं कि स्त्री-पुरुष क्या है |
स्त्री-पुरुष का असंतुलन विनाश पैदा करता है | विकृत मानसिकता के कारण ही इस समाज
में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध हो रहे हैं |
उन्होंने आगे कहा कि इस समाज में
पितृसत्तात्मक और मातृसत्तात्मक पक्ष हैं | मातृसत्तात्मक समाज में बलात्कार नहीं
होते | वहाँ वरण की स्वतंत्रता है | स्त्री-पुरुष के झगड़े स्वतंत्रता को लेकर है |
स्वतंत्रता के हनन के कारण ही लड़ाई हो रही है | आजादी के बाद के हिन्दुस्तान की
तस्वीर में पिछडा हुआ कानून है | आज भी उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या की संख्या ज्यादा
है | स्त्रियों का सामूहिक रूप में इसके विरोध न उठ खड़े होना भी इसका बड़ा कारन है
| पुरुष वर्चस्व से दबी स्त्रियाँ पंचायतों में उपस्थित होकर भी स्त्री विरोधी फैसलों
का प्रतिरोध नहीं कर पातीं | पश्चिम में यह स्थिति नहीं है |
प्रो. गंगा प्रसाद विमल ने आगे कहा
कि आज के स्त्री लेखन को यदि देखें तो पता चलता है कि स्त्री को देह बनाने में
पुरुष के जाल का विस्तार किया जा रहा है | स्त्री को देह बनाने का धंधा कॉरपोरेट
जगत का है | कॉर्पोरेट जगत, फिल्मी दुनिया, मेडिकल फील्ड, व्यवसाय आदि
क्षेत्रों में स्त्रियों के प्रति भयंकर वीभत्स मनोवृत्ति विद्यमान है | स्त्रियों
को उनके अधिकार का लाभांश बहुत कम मिल रहा है | इस तरह के धंधे में जो शामिल हैं
उन्हें सजा मिलनी चाहिए |
उन्होंने यह भी कहा कि
स्त्री-पुरुष में मोह/ संवेदना का संबंध यदि न हो तो समाज का विकास नहीं हो सकता
है | अतः इन्हें अलग करके देखना नहीं चाहिए | प्रेम और संवेदना नष्ट हो जाएगी तो
स्त्री देह भर रह जाएगी | अपराध बढ़ जाएगा | सृजनात्मक दृष्टि के लिए स्त्री और पुरुष
के बीच संतुलन की आवश्यकता है | यह संतुलन युग्म सृष्टि के लिए अनिवार्य है |
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : विचार सत्र 5-1
12 जनवरी 2014.
'विदेशों
में हिंदी का स्वरूप' विषय पर
केंद्रित इस विचार सत्र की अध्यक्षता डॉ. हबीबुलो
रजबोव (तजा किस्तान) ने की. प्रो. ऋषभ देव शर्मा,
कृष्ण कुमार ग्रोवर, डॉ. साई प्रसाद, डॉ. प्रणातार्तिहरण, डॉ. अनिरुद्ध सेंगर, डॉ. नरेंद्र मिश्र,
डॉ. मुकेश मिश्र, डॉ.
व्यास नारायण दुबे, डॉ. वत्सला किरण और डॉ.
जगन्नाथ रेड्डी मंचासीन थे | इस सत्र में कुल 14
शोधपत्र प्रस्तुत किए गए |
प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि
जो भारतवंशी अंग्रेजों के समय भारत से मॉरीशस-
सूरीनाम आदि स्थानों में गए, वे अपने साथ अपनी भाषा तथा अपनी बोली को भी
लेकर गए और वहाँ की भाषा से भी प्रभावित हुए | परिणामस्वरूप वहाँ नए
भाषा रूपों अथवा कोड़ों का विकास हुआ | मॉरीशस में
फ्रेंच के दबाव के कारण पिजिन विकसित हुई | बाद में वह मातृबोली के रूप में
प्रतिष्ठित होकर क्रियोल बन गई | कोड मिक्सिंग की प्रवृत्ति उनकी व्यावहारिक भाषा
में परिलक्षित है तथा एक सीमा तक साहित्य में भी, परन्तु व्यापक रूप में वहां के
लेखन में भी मानक हिंदी ही प्रयुक्त दिख रही है क्योंकि उसकी रचना भारत के पाठक को
ध्यान में रखकर की जा रही है | उन्होंने आगे कहा कि हिंदीतर देश में एक भिन्न
प्रकार की हिंदी प्राप्त होनी चाहिए लेकिन ऐसा बहुत कम देखने में आया है | सूरीनाम
आदि में भोजपुरी के पुराने रूप के संरक्षण की प्रवृत्ति पर भी डॉ. ऋषभ ने सोदाहरण
प्रकाश डाला |
दूसरा वर्ग वह है जिसने आजादी के पश्चात विदेश
जाकर कॉर्पोरेट जगत में अपने आपको स्थापित कर लिया है | वे अब अपनी तीसरी पीढी को
भारतीय संस्कृति से जोड़ने की खातिर अपनी भाषा को कायम रखना चाहते हैं | इस वर्ग के
लेखकों की हिंदी में अधिक तत्समता दिखाई देती है | उन्होंने आगे कहा कि विदेशों
में हिंदी के स्वरूप पर बहुत गंभीर और सूक्ष्म अध्ययन की जरूरत है | तीसरे
वर्ग में डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने कई देशों में उर्दू शैली के रूप में हिंदी के
व्यवहार की भी चर्चा की |
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. हबीबुलो
रजबोव ने कहा कि हिंदी सबकी सहोदरा भाषा है | उन्होंने आगे कहा कि एक भाषा
महात्मा गांधी की भाषा है, एक जवाहरलाल नेहरू की भाषा है और
एक प्रेमचंद की भाषा है | उन्होंने यह सूचना दी कि तजाकिस्तान के तीन विश्वविद्यालयों
में हिंदी सिखाई जा रही है और वहाँ के लोग हिंदी भाषा से बहुत प्यार करते है |
चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 5-2
'भूमंडलीकरण एवं नई
प्रौद्योगिकी व भाषाएँ' विषयक
विचार सत्र की अध्यक्षता प्रमुख समाजभाषा वैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह ने की | डॉ.
चंद्रमोहन, डॉ. व्यास नारायण मिश्र, डॉ. दोड्डा शेषुबाबू, डॉ. शेषन, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. राजवीर आदि मंचासीन थे | इस सत्र
में 38 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए |
प्रो. दिलीप सिंह ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में
कहा कि हिंदी अतिवाद से हमें बचना चाहिए | सावधानी और सूक्ष्म आकलन की जरूरत तो है ही | हमारी
भाषाएँ भूमंडलीकरण और प्रौद्योगिकी के कारण कहाँ पहुँची हैं इसको देखना होगा |
छापाखाने, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से
भाषा में परिवर्तन हुआ तो भी शुद्धतावादियों को कष्ट हुआ था और अब प्रौद्योगिकी के
प्रभाव से आ रहे परिवर्तनों से भी उन्हें शिकायत है जो अनुचित है | भाषा
परिवर्तन ही भाषा विकास का प्रमाण है | बदलाव सांकेतिक और तर्कपूर्ण है | इसे
सूक्ष्म दृष्टि से देखना होगा | जब हमने प्रौद्योगिकी के साथ भाषा को जोड़ा, कम्प्युटर से साथ भाषा को जोड़ा तो दो शाखाएँ सामने
आईं - भाषा इंजीनियरी तथा भाषा सिद्धांत परीक्षण | भाषा इंजीनियरी natural language processing को भी समेटे हुए है जिसकी
शुरूआत 1975 में हुई | इसमें भाषा के
व्यावहारिक प्रयोग तथा अनुवाद की बात की जाती है | भाषा सिद्धांत परीक्षण में
मशीनी भाषा के विकास पर बल दिया जाता है |
प्रो.दिलीप सिंह ने आगे कहा कि अब
हम बिना क्रिया की भाषा भी लिखते हैं | पहले Telegraphic
English सामने आई | अब हम sms लिखने के लिए
बिना क्रिया की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं | उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि
प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना है तो हमें व्याकरणिक भाषा प्रयोग का मोह छोड़ना होगा
| संप्रेषण टेक्नोलॉजी की मदद से तकनीकी भाषा बनानी होगी | हिंदी तथा अन्य
भारतीय भाषाओं को मशीनों के योग्य भाषाएँ बनानी होंगी | भाषा के मामले में हम बहुत
ही conservative हैं | इसके नए
स्वरुप के प्रयोग के साथ हमें familiar बनना होगा, दोस्ताना रिश्ता बनाना होगा | बाजार में हमें अपनी भाषाओं
को सँवारना है | चाहे विज्ञापन हो या बाजार समाचार हो - इन्होने हमारे सामने एक
थिरकती हुई भाषा को पेश किया है |
चेन्नै अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन : समापन समारोह
12 जनवरी 2014 को तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी-चेन्नई, केंद्रीय हिंदी निदेशालय-नई दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा, स्टेल्ला मॉरिस
(स्वायत्तशासी) कॉलेज-चेन्नई, तमिलनाडु बहुभाषी लेखिका धर्मार्थ
संघ-चेन्नई के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का
समापन समारोह संपन्न हुआ | समापन समारोह की अध्यक्षता प्रो. दिलीप सिंह ने की |
इस अवसर पर डॉ. हबीबुलो रजबोव, ईश्वर करुण, डॉ. मधु धवन आदि
मंच पर उपस्थित थे | सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों, छात्रों, शोधार्थियों, साहित्यकारों, हिंदी सेवियों
और विद्वानों को संस्था की ओर से सम्मानित किया गया |
[रिपोर्ट - डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, द्रष्टव्य -हैदराबाद से, एल्बम/स्लाइड शो]
- संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद