शनिवार, 10 सितंबर 2011

उत्तर-पूर्वी यात्रा ( गीत )


उत्तर-पूर्वी यात्रा  ( गीत )
गद्य को पद्य में प्रस्तुत कर रही हूँ |
हम दोनों ननद-भावज, करने सैर चले |
वायुयान से बचे समय, गाड़ी देर चले ||                             
चैतन्य प्रभु की बनी समाधी,मायापुरी में देखी है |
जन्मस्थली रही नवद्वीप, जिस तट गंगा बहती है ||            
शिवशंकर का विशाल मंदिर ताड़केश्वर में है बना |
शिवगंगा में डुबकी लगाके, हर्ष हुआ है बहुत घना ||
दार्जिलिंग जा पहुँचे हम तो, करने सैर सपाटा |
छुक-छुक गाड़ी से उतरे हम, प्लेट फार्म को टाटा ||
प्रकृति-नटी की शान अनोखी, विस्तृत चाय-बागानों में |               
दृश्य अलौकिक सूर्योदय का, ओस चमकती धानों में ||
अब जा पहुँचे टाइगर हिल हम, सूर्योदय का दृश्य देखने |
उषा की मुस्कान सुनहरी, अरुणोदय के पल लखने ||  
स्वर्णिम हिम-आवृत शिखर |     
 गंगटोक दार्जिलिंग की राहों में फैली छटा निखर || 
तीस्ता और रंगीत का संगम, बड़ा सुहाना लगता था |
हनुमान मंदिर भी रंग-बिरंगे, फूलों से सजता था || 
सांगो झील गणेश मंदिर, फूलों के उत्सव अदभुत थे |      
दृश्य अलौकिक देखा सोचा, यह सपना या सचमुच थे || 
मौज  मनाने धूम मचाने, नेशनल पार्क में जा पहुँचे |      
नाम था काजीरंगा जू, गेंडे मोटे हाथी बड़े-बड़े देखे ||                           
तेजस्वनी उषा ने देखा, कभी एक शुभ-सपना |         
सहयोग चित्रलेखा का पा, अनिरुद्ध बनाया अपना ||     
सपन सुहाना था वो जिसमें, आया सुन्दर राजकुमार |
जिसे देख उषा रानी के, थिरक उठे थे मन के तार ||
घोर गर्जना मेघों की जो, मेघालय  नाम सार्थक होगा |   
खूब झमाझम बादल बरसें, उसका मजा अलग होगा ||  
प्यारी-प्यारी बालाएँ वो, गुड़िया जैसी दिखती थी |
शिलांग के बाजारों में तो, जापानी चीजें बिकती थी ||     
चेरापूंजी में होती है, सबसे ज्यादा बरसात |
हरे-भरे हैं बाग़-बगीचे, शीतल दिन वो ठंडी रात ||
कामख्या देवी के पूजन को, जा पहुँचे गुवाहाटी |
ठंडा-मीठा शर्बत पीये, खाए दाल वो बाटी ||
कलकत्ता की काली माता, तेरे दर्शन को आये |
पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट चढाने लाये ||
मशहूर वहां का घाघरा चून्नी, और मिले सिंदूर |
खाने को रसगुल्ले सिंघाड़े, राजकचोरी भी भरपूर ||           
दृश्य निराले अदभुत सारे, सब देखे फिर लौट चले |                          
वायुयान से पहुंचे झटपट, गाड़ी से लगती देर भले ||                               
सारे अनुपम दृश्य पिरोकर, उस माला को फेर चले |                           
हम ननद और भावज दोनों की, पूरी सुन्दर सैर अरे !                                   

संपत देवी मुरारका (भाभी) "संपत"
विजयलक्ष्मी काबरा (ननद)

                         
























5 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक काव्यात्मक संस्मरण लेखन के लिए बधाई.

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  2. पुनश्च--
    यात्रा के कुछ चित्र भी लगा दें तो पोस्ट की दर्शनीयता बढ़ जाएगी.

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  3. यात्रा का संस्मरण लिखा आपने पद्य में है
    यह रोचक, संक्षेप और पठनीय भी है.
    आपने बहुत से स्थान देखे, संग सखी
    बधाई,आपने तो अच्छी कविता लिखी.

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  4. चंद्रमौलेश्वर जी, ऋषभदेव जी, डॉ. बी. बालाजी,
    आप सभी ने इस गीत को सराहा एतदर्थ आभारी हूँ | ऋषभदेव जी तस्वीरें सौ से भी ज्यादा हैं | कैसे लगाऊँ | मार्गदर्शन कीजिएगा |

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