मंगलवार, 21 जून 2016

‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ‘संकल्पना’ लोकार्पित










‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा संकल्पना’ लोकार्पित

हैदराबाद, 21 जून 2016 (प्रेस विज्ञप्ति). 

साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’  के तत्वावधान में आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमीके नामपल्ली स्थित सभाकक्ष में स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद कृत ‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ऋषभदेव शर्मा और गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित ‘संकल्पना’ शीर्षक  दो पुस्तकों का लोकार्पण समारोह भव्यतापूर्वक संपन्न हुआ जिसमें उपस्थित विद्वानों ने हिंदी साहित्य और विमोचित पुस्तकों पर विचार व्यक्त किए.

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय  के भारत अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए  निरंतर बढ़ती जा रही वृद्धों की आबादी के पुनर्वास को इक्कीसवीं शताब्दी की एक प्रमुख चुनौती बताया और विमोचित कृति ‘वृद्धावस्था  विमर्श’ को सामयिक तथा प्रासंगिक पुस्तक माना. उन्होंने अनुसंधान के स्तर की गिरावट पर चिंता जताते हुए इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि ‘संकल्पना’ में प्रकाशित ज़्यादातर शोधपत्र अभिनव, मौलिक और उच्च कोटि के हैं.

स्त्रीविमर्श की पैरोकार और  आथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के हैदराबाद अध्याय की संयोजक डॉ. अहिल्या मिश्र ने अध्यक्षीय भाषण में प्राचीन भारतीय समाज में वृद्धों की सम्मानजनक स्थिति की तुलना उनकी वर्तमान हीन दशा से करते हुए विश्वास प्रकट किया कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की पुस्तक समाज को इस दिशा में नए चिंतन और वृद्धावस्था-नीति के निर्माण की प्रेरणा दे सकती है. दूसरी लोकार्पित पुस्तक ‘संकल्पना’ को उन्होंने शोधार्थियों और शोध निर्देशकों के लिए उपयोगी प्रतिमान की संज्ञा दी.  

‘वृद्धावस्था विमर्श’ की प्रथम प्रति स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के पुत्र राजेश प्रसाद तथा वरिष्ठ शिक्षाविद आनंद राज वर्मा ने स्वीकार की. इस अवसर पर डॉ. वर्मा ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के व्यक्तिगत गुणों और साहित्यिक देन की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने उर्दू साहित्यकारों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेखन के अलावा विश्व साहित्य की अनेक अमर कहानियों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया था.

समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अतिथियों और विमोच्य कृतियों का परिचय देते हुए बताया कि ‘वृद्धावस्था विमर्श’ विश्वविख्यात अस्तित्ववादी स्त्रीविमर्शकार सिमोन द बुवा के ग्रंथ ‘द ओल्ड एज’ का हिंदी सारानुवाद है तथा ‘संकल्पना’ में दक्षिण भारत के 39 शोधार्थियों के शोधपरक आलेख सम्मिलित हैं जिनका सबंध विविध समकालीन विमर्शों से है.  डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने  यह जानकारी भी दी कि यथाशीघ्र चंद्रमौलेश्वर प्रसाद द्वारा अनूदित कहानियों को भी पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा और ‘संकल्पना’ की अगली कड़ी के रूप में शोधपत्रों का दूसरा संकलन ‘अन्वेषी’ शीर्षक से प्रस्तुत किया जाएगा.  

आरंभ में टी. सुभाषिणी ने सरस्वती-वंदना की और डॉ. पूर्णिमा शर्मा, वर्षा कुमारी, मोनिका शर्मा एवं वी. कृष्णा राव ने उत्तरीय प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया. संतोष विजय मुनेश्वर ने स्वागत-गीत और अर्चना पांडेय ने वर्षा-गीत सुनाकर समां बाँध दिया. संचालन डॉ. मंजु शर्मा ने किया. 

समारोह में नाट्यकर्मी विनय वर्मा, वैज्ञानिक डॉ. बुधप्रकाश सागर, राजभाषा अधिकारी लक्ष्मण शिवहरे, सामाजिक कार्यकर्ता द्वारका प्रसाद मायछ, रोहित जायसवाल, राजेंद्र परशाद, गुरु दयाल अग्रवाल, विनीता शर्मा, नरेंद्र राय, कुमार लव, संपत देवी मुरारका, डॉ. करन सिंह ऊटवाल,  डॉ. सीमा मिश्र, डॉ. बनवारी लाल मीणा, डॉ. जी. प्रवीणा, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. वेमूरि हरि नारायण शर्मा, डॉ. बी. सत्य नारायण, डॉ. मिथलेश सागर, डॉ. रियाज़ अंसारी, डॉ. सुमन सिंह, डॉ. श्री ज्ञानमोटे, डॉ. महादेव एम. बासुतकर, डॉ. अर्पणा दीप्ति, डॉ. बी. बालाजी, वी. देवीधर, मोहम्मद आबिद अली,  पी. पावनी, अशोक कुमार तिवारी, पूनम जोधपुरी, भंवर लाल उपाध्याय, जी. परमेश्वर, सरिता सुराणा, सुस्मिता घोष और गौसिया सुल्ताना  सहित विविध विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े शताधिक विद्वान, लेखक, शोधार्थी और हिंदीसेवी  सम्मिलित हुए.

अंत में प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने प्रेम बना रहे!’ कहते हुए आयोजन में सहयोग के लिए सबका आभार व्यक्त किया।

v  प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, सह संपादक : ‘स्रवंति’, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद -500 004 (तेलंगाना)

चित्र परिचय :
1.        ‘वृद्धावस्था विमर्श’ का लोकार्पण प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने किया. पुस्तक की प्रथम प्रति स्वीकार करते हुए प्रो. आनंद राज वर्मा. साथ में, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. अहिल्या मिश्र, राजेश प्रसाद, प्रो. ऋषभ देव शर्मा  एवं अन्य.
2.       सुधी श्रोता-समुदाय : विनीता शर्मा, डॉ. रमा द्विवेदी, मीना मुथा, नरेंद्र राय, डॉ. बी. सत्यनारायण एवं अन्य.
3.       ‘संकल्पना’ का लोकार्पण करते हुए डॉ. अहिल्या मिश्र. साथ में, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा.
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
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रविवार, 19 जून 2016

डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली का प्रकाशन

           
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली का प्रकाशन
संपादन
डॉ. कमलकिशोर गोयनका
डॉ. मीना अग्रवाल
प्रकाशक : हिन्दी साहित्य निकेतन, 16 साहित्य विहार, बिजनौर (उ.प्र.)
सभी ग्यारह खंडों का मूल्य 10,000 रुपए. पृष्ठ संख्या 6000
      सभी खंड एक साथ मँगाने पर डाक व्यय सहित मूल्य 6000 रुपए      

      डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली का संपादन और प्रकाशन हर्ष का विषय है। गीत और कविताओं से आरंभ करके साहित्य की विविध विधाओं में साहित्य-सृजन उनकी लेखन-क्षमता का पुष्ट प्रमाण है। इसी आधार पर उनकी रचनावली को ग्यारह भागों में प्रकाशित किया गया है-1. ग़ज़ल समग्र; 2. काव्य समग्र दो (कविताएँगीतमुक्तकदोहा);  3. कहानी समग्र;4. गद्य समग्र (निबंधसाहित्यिक अनुभवशोधसमीक्षा आदि); 5. जीवनी समग्र; 6. नाटक समग्र एक (बाल-नाटक); 7. नाटक समग्र दो (हास्य-नाटकसामाजिक नाटकनुक्कड़ नाटक); 8.व्यंग्य समग्र एक; 9. व्यंग्य समग्र दो; 10. भूमिका समग्र; 11. बालसाहित्य समग्र।
      गिरिराज की सबसे प्रिय विधा ग़ज़ल है। ग़ज़ल के उनके छह संग्रह प्रकाशित हुए हैंजिनमें 500 से अधिक ग़ज़लें संकलित हैं। ग़ज़ल के विषय में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने स्वयं लिखा है-'ग़ज़ल हृदय की अनुभूति की सूक्तिमय शैली है। इसकी अपनी भाषाअपना भावअपनी उपमाएँ और अलंकार होते हैं। ग़ज़ल में एक विशेष लोच व आकर्षण होता है। किसी बात को सीधे-सीधे कह देना ग़ज़ल को पसंद नहींजो कुछ कहना है-संकेतों में। इसलिए ग़ज़ल गागर में सागर है।उनकी ग़ज़लों की सबसे बड़ी विशेषता है-आशावाद।
      गिरिराजशरण अग्रवाल समग्र के द्वितीय खंड में डॉ. अग्रवाल की कविताएँ (अक्षर हूँ मैं)हास्य कविताएँ (मेरी हास्य-व्यंग्य कविताएँ) मुक्तक (बूँद के अंदर समंदर) रूबाइयाँदोहे (जिनमें मुहावरा दोहे तथा पर्यायवाची दोहे भी सम्मिलित हैं) संगृहीत किए गए हैं। अपनी ग़ज़लों में ज़िंदगी की इंद्रधनुषी झाँकियों के बीच निरंतर आशावाद की ध्वजा लेकर चलनेवाले गिरिराजशरण अग्रवाल ने 'अक्षर हूँ मैंके माध्यम से सचमुच अपने जीवन के कड़वे-मीठेकाले-सफ़ेदनिराशापूर्ण और आशाओं से भरे चिंतन को पूरी ईमानदारी से अभिव्यक्ति दी हैजो सीधे पाठक से संवाद करके उसे बाँध लेती है। इसी खंड में अप्रकाशित रूबाइयाँदोहे (इनमें पर्यायवाची दोहे तथा मुहावरा दोहे प्रमुख हैं) तथा गीत (जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं) तथा हास्य-व्यंग्य शैली की ग़ज़लें भी संगृहीत हैं।
       इस रचनावली का तीसरा खंड कहानियों का है। इस खंड में डॉ. अग्रवाल द्वारा लिखी गई 82 कहानियाँ संकलित हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ उनके पूर्व प्रकाशित कहानी-संग्रहों-जिज्ञासा एवं अन्य कहानियाँछोटे-छोटे सुखआदमी और कुत्ते की नाक में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अतिरिक्त उनकी अप्रकाशित कहानियाँ भी इस खंड में सम्मिलित हैं। डॉ. कमलकिशोर गोयनका के अनुसार 'डॉ. अग्रवाल कहानी लिखने की कला में तथा कहानी को जीवन के उच्च सरोकारों से जोड़ने में पूर्णत: पारंगत हैं। इस खंड में उनकी व्यापक जीवन दृष्टि से परिपूर्ण कहानियाँ संगृहीत हैं।'
      चौथा खंड गद्य समग्र का है। इस खंड में गिरिराजशरण अग्रवाल के 'सवाल साहित्य के' (साहित्य में लेखक के अनुभव) के साथ उनके समय-समय पर प्रकाशित लेख संगृहीत हैं। डॉ. अग्रवाल सन् 2001-2002 में रोटरी अंतर्राष्ट्रीय के मंडल 3100 के मंडलाध्यक्ष थे। मंडलाध्यक्ष के रूप में दिए गए उनके उद्बोधन और प्रकाशित आलेख भी इसी खंड में रखे गए हैं। इनके अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण आलेखों का संग्रह भी इस खंड में किया गया हैजिसमें डॉ. अग्रवाल के चिंतनमननविवेचन तथा उनकी शोधवृत्ति के दर्शन होते हैं। निबंधों की भाषा सहजसरल,संप्रेषणक्षम है।
      डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल समग्र के पाँचवें खंड में भारतीय साधकोंसंतोंमहापुरुषोंराजनेताओं और स्वतंत्रता-सेनानियोंसाहित्यकारों की जीवनियाँक्रांतिकारी सुभाष के जीवन पर आधारित जीवनीपरक उपन्यास 'क्रांतिकारी सुभाष', लेखक का आत्मचरित (आत्मकथ्य) संयोजित किया गया है। क्रांतिकारी सुभाषजीवनीपरक उपन्यास हैजो महान देशभक्त और स्वतंत्रता-सेनानी सुभाषचंद्र बोस के जीवन को आधार बनाकर लिखा गया है। आत्मकथ्य में डॉ. गिरिराजशरण ने अपने जीवन की उन घटनाओं का उल्लेख किया हैजो सामान्यत: पाठकों के सामने बाहरी व्यक्ति द्वारा नहीं आ सकतीं।
      खंड छह और सात में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल द्वारा लिखित बाल नाटकोंहास्य-व्यंग्य एकांकियोंसमाज तथा राजनीति से जुड़े एकांकियों तथा नुक्कड़ नाटकों को संगृहीत किया गया है। डॉ. अग्रवाल ने प्रभात प्रकाशनदिल्ली के लिए एकांकी नाटकों की एक बड़ी शृंखला का संपादन किया था। इस शृंखला में विषय-क्रम से एकांकियों का संकलन किया गया था। तब भी उन्होंने प्रत्येक खंड के लिए एकांकियों की रचना की थी। उसके बाद तो उनके एकांकियों के अनेक संकलन प्रकाशित हुए। इनमें प्रमुख हैं-नीली आँखें (जो बाद में 'मंचीय सामाजिक नाटकनाम से प्रकाशित हुआ)ग्यारह नुक्कड़ नाटकमंचीय व्यंग्य एकांकीबच्चों के शिक्षाप्रद नाटकबच्चों के हास्य नाटकबच्चों के रोचक नाटक। इन सभी पुस्तकों में प्रकाशित एकांकी नाटकों को इन दोनों खंडों में संयोजित किया गया है।
      खंड आठ तथा नौ में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल के 202 व्यंग्य संकलित हैं। हास्य और व्यंग्य के क्षेत्र में डॉ. अग्रवाल का कार्य इतना व्यापक हैऐसा कम लोगों को ही ज्ञात है। उनके व्यंग्य के पाँच संकलन प्रकाशित हुए हैं-बाबू झोलानाथराजनीति में गिरगिटवादमेरे इक्यावन व्यंग्यआदमी और कुत्ते की नाक तथा आओ भ्रष्टाचार करें। हास्य-व्यंग्य-लेखन की एक विशिष्ट शैली को विकसित करने में डॉ. अग्रवाल का योगदान विशेष सराहनीय है। उन्होंने स्वयं कहा है-'विसंगतियों और विडंबना-विकारों के रहते हुए व्यंग्य हास्यशून्य नहीं हो सकता और हास्य भी व्यंग्य के बिना अपना अस्तित्व बनाकर नहीं रख सकता।'  
      खंड दस भूमिका खंड है। डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने सन् 1986 से 2004 तक प्रत्येक वर्ष की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य रचनाओं का संपादन किया। इनके अतिरिक्त विषय-आधारित कहानियों के ग्यारह खंडोंएकांकियों के दस खंडोंव्यंग्य के दस खंडों का संपादन किया। इन सभी खंडों में विषयानुसार भूमिकाएँ लिखीं। पिछले दशक के श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य एकांकीपिछले दशक की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कविताएँपिछले दशक की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कहानियाँ संपादित कीं। अपनी अनेक पुस्तकों की भूमिकाओं के साथ-साथ कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भूमिकाओं को लिखने का अवसर भी उन्हें मिला। इन सभी भूमिकाओं को दसवें खंड में सम्मिलित किया गया है। 'शोध दिशात्रैमासिक के जुलाई 2006 और उसके बाद लिखे गए महत्त्वपूर्ण संपादकीय भी दसवें खंड में सम्मिलित हैं।
      गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनावली के खंड ग्यारह में उनके द्वारा रचित बालसाहित्य को सम्मिलित किया गया है। उन्होंने बच्चों के लिए एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी 'मानव विकास की कहानी', जो पहले 'आओ अतीत में चलेंनाम से प्रकाशित हुई थी और जिस पर अनेक संस्थाओं ने पुरस्कार देकर प्रतिष्ठा की मुहर लगाई थी। इस पुस्तक में डॉ. अग्रवाल ने मानव-सभ्यता का इतिहास रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कहानी को पढ़ते समय किसी प्रकार का बोझ बच्चे के मन-मस्तिष्क पर नहीं पड़ता और वह आसानी से मानव विकास की कहानी को समझ लेता है। इसी खंड में डॉ. अग्रवाल द्वारा लिखी हुई 29 बालकहानियाँ भी सम्मिलित हैं। इनमें कई कहानियाँ वैज्ञानिक और बालमनोविज्ञान के दृष्टिकोण से लिखी गई हैं।
      यह डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल रचनावली के ग्यारह खंडों का संक्षिप्त विवरण है। इन सभी खंडों में आप उन के व्यक्तित्व से उनके साहित्य की और साहित्य से उनके व्यक्तित्व की पहचान कर सकते हैं। डॉ. अग्रवाल एक तपस्वी साहित्यकार हैंमौन साधक हैं, ज्ञान के जिज्ञासु और प्रसारक हैं। उनका काम बड़ा और विस्तृत है। यह रचनावली उनके जीवन की सार्थकता का प्रमाण है और इसका भी कि संभल या बिजनौर जैसे एक छोटे नगर से कोई कैसे राष्ट्रीय बनता है और अपनी पहचान को स्थायी बनाता है।
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प्राप्त पत्रिकाएँ 
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डॉ.एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी का ओसाका विश्वविद्यालय, जापान में भाषण




वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी का ओसाका विश्वविद्यालय, जापान में भाषण 
माननीय दिग्गज हिन्दी प्रेमियो !

गत सप्ताह (जून 2 को ) वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी का भाषण ओसाका विश्वविद्यालय  में आयोजित हुआ था । 400 सीटों का पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था । भाषण अँग्रेजी में बिना दुभाषिए के हुआ था । भाषण के बाद ,<भोज > में मुझे आमंत्रण मिला और कुछ मिनट के लिए हिन्दी में बोलने का अवसर मिला था । मैंने अरुण जेटली जी और अन्य दिग्गज अतिथियों को संबोधित करके निम्नलिखित बातें बताई थीं ।

"हमारा ओसाका विश्वविद्यालय जापान का सब से बड़ा सरकारी (central )विश्वविद्यालय है और यहाँ के हिन्दी-उर्दू के अध्ययन-अध्यापन के   95 साल के  लंबे इतिहास और परंपरा है । ओसाका विश्वविद्यालय पश्चिमी जापान में हिन्दी- उदू शिक्षण का गढ़  माना जाता है ।
 सन 2001 में  जब तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ओसाका पधारे थे और पाँच सितारे होटल में उनका स्वागत समारोह हुआ था तो हमारे कुछेक इच्छुक विद्यार्थियों ने उनके मनोरंजन के लिए हिन्दी में लघु नाटक प्रस्तुत करके उनका दिल जीत लिया था । और जब हमारे हिन्दी नाट्य दल के विद्यार्थी भारत में हिन्दी नाटक के मंचन के लिए गए थे तो वाजपेयी जी ने सभी छात्रों को अपने निवास-स्थान में जलपान के लिए आमंत्रित किया था और छात्रों के हिन्दी -प्रेम की प्रशंसा की थी  । सन 2014 में जब टोक्यो में Indo-Japanese Association की ओर से आयोजित स्वागत समारोह में हिन्दी में भाषण देते हुए सैंकडों श्रोताओं के बीच बैठे मुझे पहचान लिया  और सभी श्रोताओं के सामने कहा -"आपने ही मुझे चिट्ठी लिखी थी न, कि मोदी जी जब  आप जापान आएंगे तो हिन्दी में ही बोलें " तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा , मैं अभिभूत हो गया उनकी प्रखर स्मृति शक्ति से । भाषण के अंत में क्षण भर उनसे बात करने का मौका मिला तो मैंने उनसे बस  इतना अनुरोध किया था कि आप अगली बार ओसाका अवश्य आएँ तो उन्होंने उत्तर दिया कि "हाँ , आऊँगा !"  उसके  बाद ओसाका विश्ववविद्यालय के कुलपति का औपचारिक आमंत्रण -पत्र ओसाका स्थित भारत के प्रधान कोंसलावास के माध्यम से प्रधान मंत्री कार्यालय में भिजवाया गया है  । "

और मैंने निष्कर्ष के तौर पर  प्रधान मंत्री जी के "दाहिना हाथ" कहलाने वाले जेटली जी से अनुरोध किया था --
"आप प्रधान मंत्री जी से जब मिलेंगे तो उन्हें मेरे साथ किए गए वायदे की याद दिलाएँ और यह बताएं कि ओसाका विश्वविद्यालय के  विद्यार्थी  आपका भाषण हिन्दी में सुनने के लिए बहुत उत्सुक और अधीर हैं । प्रधान मंत्री जी का ओसाका  विश्वविद्यालय में हिन्दी में भाषण केवल इस विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात नहीं है , अपितु हिन्दी के प्रचार के लिए बहुत सांकेतिक महत्त्व रखता है ।"

मुझे पता नहीं कि मेरे इस भाषण का उनपर कितना असर पड़ा हो । लेकिन उनकी शक्ल से तो कुछ कुछ स्वीकारात्मक संकेत झलक रहे थे ।
उसी दिन शाम को ओसाका शहर के  एक होटल में Japan External Trade Organization की ओर से आयोजित "India: Investment Promotion Seminar"  (जिसमें भारत में निवेश के इच्छुक उद्योगपति ,व्यापारी और प्रवासी भारतीय आदि बड़ी संख्या में उपस्थित थे ) में मैं भी एक श्रोता के रूप में उपस्थित था और buffet-style party में मैं पीछे खड़ा था, लेकिन उन्होंने मुझे आगे  अपने पास बुलवाया और फिर से मैंने अभिवादन करके उनसे विदाई ली थी ।

मुझे ईश्वर से प्रार्थना है कि वित्त मंत्री जी से मेरी यह भेंट प्रधान मंत्री जी के  संभवी  ओसाका विश्वविद्यालय-आगमन  के  लिए मजबूत सहायक सिद्ध हो !

आपका तोमिओ मिज़ोकामि,
मानद प्रोफेसर, ओसाका विश्वविद्यालय ,ओसाका, जापान
जून 10, 2016
Prof.Tomio MIZOKAMI
-- 
विजय कुमार मल्होत्रा ,पूर्व निदेशक (राजभाषा),रेल मंत्रालय,भारत सरकार
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बैंक ऑफ़ बड़ौदा के कार्यपालकों द्वारा लिखित पुस्‍तक आधुनिक भारतीय बैंकिंग का लोकार्पण ।

बैंक ऑफ़ बड़ौदा के उप महाप्रबंधक डॉ. जवाहर कर्नावट एवं सहायक महाप्रबंधक श्री देवेन्‍द्र कुमार खरे द्वारा आधुनिक भारतीय बैंकिंग – सिद्धांत एवं व्‍यवहार विषय पर लिखित पुस्‍तक का लोकार्पण वि‍त्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पुणे में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्‍मेलन एवं समीक्षा बैठक में भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के सचिव श्री अनूप कुमार श्रीवास्‍तव, (आईएएस) ने किया. इस अवसर पर वित्तीय सेवाएं विभाग के संयुक्‍त निदेशक डॉ. वेदप्रकाश दूबे, विजया बैंक के कार्यपालक निदेशक श्री बी.एस. रामाराव, बैंक ऑफ़ बड़ौदा के महाप्रबंधक श्री रवि कुमार अरोरा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा वित्तीय संस्‍थाओं के मुख्‍यालय के वरिष्‍ठ कार्यपालक भी उपस्थित थे. उल्‍लेखनीय है कि बैंकिंग विषयों पर हिन्‍दी में उपयुक्‍त संदर्भ सामग्री की आवश्‍यकता बढ़ती जा रही है ।
 ऐसे में वित्तीय क्षेत्र से जुड़े कर्मियों के लिए यह पुस्‍तक एक महत्‍वपूर्ण संदर्भ सामग्री के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी ।
 इस अवसर पर बैंक की हिंदी पत्रिका ‘अक्षय्यम’ का नवीन अंक भी जारी किया गया​​


वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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हैदराबाद

'जय विजय' का जून 2016 अंक


प्रिय महोदय/महोदया,

पत्रिका 'जय विजय' का जून 2016 अंक आपके अवलोकनार्थ प्रेषित है.

इसमें अपनी वेबसाइट www.jayvijay.co पर रचनाकारों द्वारा पिछले एक माह
में लगायी गयी रचनाओं में से श्रेष्ठ रचनाओं को चुनकर प्रकाशित किया गया
है. अन्य रचनाओं को पढने के लिए कृपया वेबसाइट पर पधारें.

नए-पुराने रचनाकारों का स्वागत है.

आपका-
विजय कुमार सिंघल
संपादक
प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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​ डॉ. विनोद कुमार मिश्र के 'विश्व हिंदी सचिवालय' मॉरीशस के महासचिव पद पर मनोनीत




कुछ विचार -कुछ समाचार 


डॉ. विनोद कुमार मिश्र के 'विश्व हिंदी सचिवालय' मॉरीशस के महासचिव पद पर मनोनीत होने पर 
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई' की ओर से हार्दिक बधाई व स्वागत ।

डॉ. एम.एल. गुप्ता ''आदित्य'

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विश्व हिंदी संस्थान, नीदरलैंड की निदेशक व साहित्यकार प्रो. डॉ. पुष्पिता अवस्थी से
लोकसभा चैनल पर प्रसारित भेंटवार्ता निम्न लिंक पर देखें।
यू आर एल -   https://www.youtube.com/watch?time_continue=2&v=uqOAPsXzFvY
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इस अंक में
"आवरण" में पढ़ें कबीर पर विशेष आलेख
अमेरिका से -
डॉ. सुरेश राय  :  "कबीर की उलटबांसी"डॉ. शैलजा सक्सेना  :   "सुनो भई साधो "
गुलशन मधुर  :  "सुरत निरत के भेद", मीरा गोयल  :  "अविस्मरणीय कबीर"
डॉ. मृदुल कीर्ति  :  "कबीर के मायने" रमेश जोशी   "दास कबीर जतन ते ओढ़ी"
नीना वाही   :  "भया कबीर उदास", डॉ. सरोज अग्रवाल   :  "माया महा ठगनी"
पुष्पा सक्सेना   "कबिरा खड़ा बाज़ार में"
ऑस्ट्रेलिया से -
हरिहर झा   :  "कबीर का समाज"नवोदिता माथुर  :  "साधो, सहज समाधि भली"
डॉ. दिनेश श्रीवास्तव  :  "कबीर गरब न कीजिये"
नीदरलैंड से - 
प्रो. मोहनकान्त गौतम   :  "हमन है इश्क मस्ताना"
सउदी अरब से - 
डॉ. अनिल प्रसाद  :  "मन रे जागत रहिये भाई"
"विमर्श" में पढ़ें -
पुरुषोत्तम अग्रवाल :  "धर्म कर्म कछु नहीं उहंवां"
 उदयन वाजपेयी  :  "ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया"
ध्रुव शुक्ल  :  "लागा चुनरी में दाग़"
हेम चन्द्र सिरोही  "द्विविधा भंजक कबीर"
"लोक में कबीर" में पढ़िये -
बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली में कविताएँ
"रम्य-रचना" में पढ़ें - "कहत कबीर सुनो भई साधो"
शेष स्तम्भ
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                   नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, मुजफ्फरपुर

 हमें आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि बैंक ऑफ़ इंडिया, आंचलिक कार्यालय, मुजफ्फरपुर के संयोजन में कार्यरत नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, मुजफ्फरपुर की वेबसाइट (www.narakasmuzaffarpur.co.in) के होम पेज पर नया मेनू “शब्द पहेलियाँ/कहानियाँ” जोड़ा गया है। इस मेनू के अंतर्गत प्रश्नोत्तरी, शब्द पहेली एवं लघु कहानियाँ औडियो के साथ उपलब्ध करवाई गई है। लघु कहानियाँ औडियो के साथ उपलब्ध करवाने का औचित्य यह है कि हिन्दी के शब्दों का उच्चारण सही ढंग से कोई भी व्यक्ति कर सके।इसके लिए हम राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के आभारी हैं, जिनसे हमने उक्त मेनू हेतु लिंक का यूआरएल साझा किया। हमारा इस लिंक को साझा करने का उद्देश्य यह है कि नराकास, मुजफ्फरपुर की वेबसाइट के साथ-साथ राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार की वेब साइट को संयुक्त रूप से जन-जन तक पहुँचाना और राजभाषा कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त करना। ऐसे भी नराकास, मुजफ्फरपुर ने अपने लिए लक्ष्य ही निर्धारित कर लिया है : सभी लोगों के दिलों में राजभाषा हिन्दी के प्रति सम्मान एवं निष्ठा का भाव जागृत करने के साथ-साथ वसुधैव कुटुंबकम का भाव भी जागृत करना। हमें अपनी समिति की नवनिर्मित वेबसाइट के संबंध में  इस देश के राजभाषा प्रेमियों के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों में रह रहे हिंदीप्रेमियों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ लगातार प्राप्त हो रही हैं।  हम आशान्वित हैं कि हमारी समिति अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सफल होगी।
       हमारी समिति द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों से बैंक ऑफ़ इंडिया की राजभाषा कार्यान्वयन के क्षेत्र में श्रेष्ठ छवि निर्मित हुई है। 

.साभार regards, निरंजन कुमार बरनवाल 
सदस्य सचिव सह प्रबंधक (राजभाषा),
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, मुजफ्फरपुर,
बैंक ऑफ इंडिया,
आंचलिक कार्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार), 
मो. 9934348133 ​
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डॉ. एम.एल. गुप्ता ''आदित्य'

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in

प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद