बुधवार, 30 मार्च 2016

हिंदी की फुल स्पीड...!! तारकेश कुमार ओझा


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हिंदी की फुल स्पीड...!!
तारकेश कुमार ओझा
जब मैने होश संभाला तो देश में हिंदी – विरोध और समर्थन दोनों का मिला – जुला माहौल था। बड़ी संख्या में लोग हिंदी प्रेमी थे, जो लोगों से हिंदी अपनाने की अपील किया करते थे। वहीं दक्षिण भारत के राज्यों खास कर तामिलनाडु में इसके हिंसक विरोध की खबरें भी जब – तब सुनने – पढ़ने को मिला करती थी। हालांकि काफी प्रयास के बावजूद इसकी वजह मेरी समझ में नहीं आती थी। संयोगवश 80 के दशक के मध्य में तामिलनाडु समेत दक्षिण भारत के राज्यों में जाने का मौका मिला तो मुझे लगा कि राजनीति को छोड़ भी दें तो यहां के लोगों की हिंदी के प्रति समझ बहुत ही कम है। बहुत कम लोग ही टूटी – फूटी हिंदी में किसी सवाल का जवाब दे पाते थे। ज्यादातर नो हिंदी ... कह कर आगे बढ़ जाते। चूंकि मेरा ताल्लुक रेल शहर से है, लिहाजा इसके दफ्तरों में टंगे बोर्ड ... हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसे अपनाइए ... दूसरों को भी हिंदी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें जैसे वाक्य बरबस ही मेरा ध्यान आकर्षित करते थे। सितंबर महीने में शहर के विभिन्न भागों में हिंदी दिवस पर अनेक कार्यक्रम भी होते थे। जिसमें राष्ट्रभाषा के महत्व और इसकी उपयोगिता  पर लंबा – चौड़ा व्याख्यान प्रस्तुत किया जाता । हिंदी में बेहतर करने वाले पुरस्कृत होते। लेकिन वाईटू के यानी 21 वीं सदी की शुरूआत से माहौल तेजी से बदलने लगा। हिंदी फिल्मी तो पहले जैसे लोकप्रिय थी ही, 2004 तक मोबाइल की पहुंच आम – आदमी तक हो गई। फिर शुरू हुआ मोबाइल पर रिंग – टोन व डायल टोन लगाने का दौर। मुझे यह देख कर सुखद आश्चर्य होता कि ज्यादातर अहिंदीभाषियों के ऐसे टोन पर हिंदी गाने सजे होते। वहीं बड़ी संख्या में हिंदी भाषी अपने मोबाइल पर बांग्ला अथवा दूसरी भाषाओं के गाने रिंग या डायल टोन के तौर पर लगाते। इस दौर में एक बार फिर यात्रा का संयोग बनने पर मैने महसूस किया कि माहौल अब तेजी से बदल चुका है। देश के किसी भी कोने में हिंदी बोली और समझी जाने लगी है। और तो और आगंतुक को हिंदी भाषी जानते ही सामने वाला हिंदी में बातचीत शुरू कर देता। 2007 तक वैश्वीकरण और बाजारवाद का प्रभाव बढ़ने पर छोटे – शहरों व कस्बों तक में शापिंग माल व बड़े – बड़े ब्रांड के शो रुम खुलने लगे तो मैने पाया कि हिंदी का दायरा अब राष्ट्रीय से बढ़ कर अंतर राष्ट्रीय हो चुका है। विदेशी कंपनिय़ों ने भी हिंदी की ताकत के आगे मानो सिर झुका दिया है। क्योंकि मॉल में प्रवेश करते ही ... इससे सस्ता कुछ नहीं... मनाईए त्योहार की खुशी ... दीजिए अपनों को उपहार ... जैसे रोमन में लिखे वाक्य मुझे हिंदी की शक्ति का अहसास कराते। इसी के साथ हिंदी विरोध ही नहीं हिंदी के प्रति अंध व भावुक  समर्थन  की झलकियां भी गायब होने लगी। क्योंकि अब किसी को ऐसा बताने या साबित करने की जरूरत ही नहीं होती। ऐसे नजारे देख कर मैं अक्सर सोच में पड़ जाता हूं कि क्या यह सब किसी सरकारी या गैर सरकारी प्रयास से संभव हुआ है। बिल्कुल नहीं.. बल्कि यह हिंदी की अपनी ताकत है। जिसके बूते वह खुद की उपयोगिता साबित कर पाई है। यही वजह है कि आज  दक्षिणी मूल के बड़ी संख्या में युवक कहते सुने जाते हैं... यार  - गुड़गांव में कुछ महीने नौकरी करने के चलते मेरी हिंदी बढ़िया हो गई है... या किसी बांग्लाभाषी सज्जन को कहते सुनता हूं... तुम्हारी हिंदी बिल्कुल दुरुस्त नहीं है... तुम्हें यदि नौकरी राज्य से बाहर मिली तो तुम क्या करोगे... कभी सोचा है..। चैनलों पर प्रसारित होने वाले कथित टैलेंट शो में चैंपियन बनने वाले अधिकांश सफल प्रतिभागियों का अहिंदीभाषी होना भी हिंदी प्रेमियों के लिए एक सुखद अहसास है। सचमुच राष्ट्रभाषा हिंदी के मामले में यह बहुत ही अनुकूल व सुखद बदलाव है। जो कभी हिंदी प्रेमियों का सपना था। यानी एक ऐसा माहौल जहां न हिंदी के पक्ष में बोलने की जरूरत पड़े या न विरोध सुनने की। लोग खुद ही इसके महत्व को समझें। ज्यादा नहीं दो दशक पहले तक इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जो आज हम अपने – आस – पास देख रहे हैं। आज के परिवेश को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमारी हिंदी अब फुल स्पीड में है जो किसी के रोके कतई नहीं रुकने वाली...।   
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लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। 
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तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934 
, 9635221463




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भवदीय,
सीएस. प्रवीण कुमार जैन
कम्पनी सचिववाशीनवी मुम्बई – ४००७०३.

Regards,
CS Praveen Kumar Jain, 
Company Secretary, Vashi, Navi Mumbai  400703.

प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

बैंक ऑफ़ बड़ौदा में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रशिक्षण की अनूठी पहल, -डॉ जवाहर कर्णावट

बैंक ऑफ़ बड़ौदा में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रशिक्षण की अनूठी पहल

बैंक ऑफ बड़ौदा ने उत्कृष्ट ग्राहक सेवा तथा ग्राहकों से सहज संवाद एवं तालमेल बढ़ाने की दिशा में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस(21 फरवरी 2016 ) के अवसर पर अपने स्टाफ सदस्यों के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के प्रशिक्षण की शुरुआत कर एक अनूठी पहल की है.अब  बैंक अखिल भारतीय स्थानांतरण नीति के परिप्रेक्ष्य मे  हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों में अपने ऐसे  स्टाफ सदस्यों को हिन्दी भाषा के साथ-साथ उन प्रान्तों की क्षेत्रीय भाषाओं का प्रशिक्षण भी दे रहा है , जिन्हें वहां की स्थानीय भाषा का ज्ञान नहीं हैं. बैंकिंग क्षेत्र में कर्मचारियों के लिए भाषा प्रशिक्षण की ऐसी अनूठी पहल करने वाला बैंक ऑफ़ बड़ौदा देश का पहला सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है.

इस प्रशिक्षण को दो चरणों में प्रारंभ किया गया है. पहले चरण में नए भर्ती किए गए अधिकारियों को बैंक के प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रारम्भिक प्रशिक्षण के साथ ही स्थानीय भाषा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है तथा दूसरे चरण में हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों में पदस्थ मौजूदा स्टाफ सदस्यों को अपने प्रशासनिक कार्यालयों में स्थानीय भाषा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस प्रशिक्षण हेतु प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा पढ़ने एवं बोलने हेतु 20 घंटे का पाठ्यक्रम तैयार किया गया है. पाठ्यक्रम पूर्ण करने पर एक परीक्षा भी ली जाएगी, जिसे उत्तीर्ण करने पर स्टाफ सदस्य को एक हजार रूपये की राशि पुरस्कार स्वरूप दी जाएगी. सप्ताह में एक दिन 2 घंटे प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु भाषा शिक्षक मानदेय के आधार पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. शुरुआती दौर में यह प्रशिक्षण मुंबई एवं पुणे (मराठी)चेन्नै (तमिल), हैदराबाद एवं विशाखापट्टनम (तेलुगु)बेंगलुरू (कन्नड़), बड़ौदा एवं सूरत (गुजराती),कोलकाता (बांग्ला)चण्डीगढ़ (पंजाबी)  में प्रारंभ किया गया है . कुछ अन्य केन्द्रों पर भी यह प्रशिक्षण 1 अप्रैल 2016 से प्रारंभ किया जाएगा.  

-डॉ जवाहर कर्णावट
सहायक महाप्रबंधक,बैंक ऑफ बड़ौदा 
कारपोरेट कार्यालय ,मुंबई ।
022--66985152 
+91 75063 78525  
प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
     

विषय: मध्य रेलवे द्वारा राजभाषा एवं राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा के सम्बन्ध में लोक शिकायत


सेवा में,
मुख्य महाप्रबंधक,
राजभाषा निदेशक,
एवं 
मुख्य राजभाषा अधिकारी,
मध्य रेलवे,
छत्रपति शिवाजी टर्मिनसमुंबई

विषय: मध्य रेलवे द्वारा राजभाषा एवं राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा के सम्बन्ध में लोक शिकायत  

महोदय/महोदया,

पिछले कई वर्षों से मैं मध्य रेलवे द्वारा राजभाषा हिन्दी और राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा देख रहा हूँ आज यह पत्र लिख रहा हूँ जिसके मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:

1.     स्टेशनों के नामों की वर्तनी और अन्य सभी निर्देशपटों पर अनेक त्रुटियाँ पाई जाती हैंउनमें सुधार करवाएँ। त्रुटियों के कुछ उदाहरण - स्वचालीत सीढीयां,कोपरखेरने, घंसोली, थाने, उपरपुर्वकल्यान, चुना भटटी, पश्चीममहीलामुत्रालय, बाहेर, खांडवा, लो.ति.ट. पर मराठी शब्द आत (प्रवेश) को आंत लिखा गया है आदि
2.     स्टेशनों/उपनगरीय स्टेशनों पर नयी किराया सूची और समय सारणी केवल अंग्रेजी में चिपकाई जाती हैं, हिंदी संस्करण महीनों बाद लगाये जाते हैं.
3.     हार्बर लाइन के उपनगरीय स्टेशनों पर 50% स्थानों पर निर्देशपटों पर सिर्फ मराठी अंग्रेजी का प्रयोग किया गया है जबकि राजभाषा हिन्दी का नहीं.
4.     सुरक्षा जानकारी के लिए आरपीएफ़ 182 की सूचना सभी स्टेशनों/उपनगरीय स्टेशनों पर सिर्फ अंग्रेजी में लगाई गई है.   
5.     मध्य रेलवे की वेबसाइट का मुखपृष्ठ 100 % द्विभाषी बनवाएँ ताकि हिन्दी को प्राथमिकता मिलेहिन्दी वेबसाइट कई सालों से अपडेट नहीं हुई हैहिन्दी वेबसाइट पर कई पृष्ठ खाली पड़े हैं उनमें हिन्दी में नवीनतम जानकारी डालें या पूरी वेबसाइट द्विभाषी कर दें ताकि अंग्रेजी में अपडेट के साथ तुरंत हिन्दी सामग्री भी अपडेट हो सकेगी। 'संपर्क करेंटैब में कोई संपर्क नहीं डाला गया है खाली पड़ा है। 
6.     फेसबुक-ट्विटर पर जानकारी अनिवार्य रूप से स्थानीय भाषा और हिन्दी में डाली जानी चाहिएडीपी में परिचय एवं डीपी नाम हिन्दी-अंग्रेजी दोनों में लिखेंफिलहाल सामाजिक संचार माध्यमों पर जानकारी, ट्रेन देरी से चलने, रद्द होने की सूचना सिर्फ अंग्रेजी में डाली जातीहै। स्थानीय भाषा/हिन्दी में जानकारी डालने से  आम जनता को सुविधा होगी।  इसकी कई लोग शिकायत कर चुके हैं.
7.     स्टेशनों पर लगे टीवी पैनलों/टिकट खिड़कियों पर लगी टीवी स्क्रीनों पर सूचनाओं/टिकट की जानकारी में नियमानुसार भाषा क्रम स्थानीय भाषाहिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिएवर्तमान समय में इनमें सूचना/जानकारी/टिकट विवरण में भाषा-क्रम "पहले अंग्रेजीफिर स्थानीय भाषा और अंत में हिन्दी" अपनाया गया है । आज यूनिकोड के अनेक सुन्दर फॉण्ट उपलब्ध हैं टीवी पैनलों/टिकट खिड़कियों पर लगी टीवी स्क्रीनों में उनका इस्तेमाल किया जाए,अब मंगल फॉण्ट के इस्तेमाल की मजबूरी नहीं है। 
8.     कागज रहित (पेपरलेस) टिकट भी त्रिभाषा में होना चाहिएजो कि वर्तमान में सिर्फ अंग्रेजी में है। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते वे इस सुविधा का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए। कागज रहित टिकट के मोबाइल  एप में तुरंत हिन्दी एवं मराठी का विकल्प जोड़ा जाए। 
9.     प्लेटफार्म टिकट पर स्टेशन का नाम हिन्दी में होना चाहिए और "वैलिड फॉर टू आवर्स" valid for 2 hours के पहले "दो घंटे के लिए वैध" छपना चाहिए। मासिक रेलवे पास पूरी तरह द्विभाषी छपना चाहिए। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते वे न तो पढ़ पाते हैं न इस वाक्य को समझ पाते हैं इसलिए कई बार उन्हें चल टिकट निरीक्षकों (च.टि.नि.) से जूझना पड़ता है। यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए। 
10. भारतीय रेल की हिन्दी/ स्थानीय भाषा की घोषणा में भी अंग्रेजी घुस रही हैइसे तुरंत प्रभाव से बंद करें। हिन्दी/स्थानीय भाषा की घोषणाओं में गाड़ी संख्या पहले की तरह हिन्दी/ स्थानीय भाषा में ही बोली जानी चाहिए न कि अंग्रेजी में।  उदाहरण: यात्रीगण कृपया ध्यान दें [हिन्दी में] गाड़ी संख्या वन वन जीरो सेविन टू आज प्लेटफार्म नंबर वन पर आ रही है। मतलब अब आपको गाड़ी संख्या और प्लेटफार्म क्रमांक भी अंग्रेजी गिनती में ही सुनाई देगा। अभी यह व्यवस्था शायद महानगरों तक की गई है हो सकता रेलवे अधिकारी इस बात को समझ चुके हैं कि हिन्दी में गाड़ी संख्या यात्री समझ नहीं सकते हैं इसलिए गाड़ी संख्या अंग्रेजी में ही बोली जानी चाहिए। पर फिर हिन्दी घोषणा भी बंद कर के केवल अंग्रेजी घोषणा ही रहनी चाहिएजो लोग हिन्दी में बोली गाड़ी संख्या नहीं समझ पा रहे हैं तो वे हिन्दी में की गई घोषणा भला कैसे समझेंगेयह पिछले दो तीन सालों से चल रहा है निर्णय किसने लिया समझ से परे है। शायद रेलवे के अधिकारी रेलवे की त्रिभाषा नीति से नाखुश हैं इसलिए मिलावट करने लगे हैं रेलवे की हिन्दीस्थानीय भाषा में की जा  रही घोषणा में गाड़ी संख्या भी हिन्दीस्थानीय भाषा में की जानी चाहिए।यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए। 
11. उपनगरीय ट्रेन टिकट पर स्टेशनों के नाम के अलावा सबकुछ अंग्रेजी में छपता हैउसे भी स्थानीय भाषा और हिन्दी में छापना चाहिए क्योंकि अंग्रेजी जानने वाले कम हैं उनकी सुविधा का तो रेलवे ने ध्यान रखा है परन्तु जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं उनकी सुविधा का ध्यान क्यों नहीं रखा जा रहा हैउदाहरण: please commence your journey within one hour के बदले "अपनी यात्रा एक घंटे के भीतर शुरू करें" मुद्रित होना चाहिए। 
12. स्वचालित टिकट विक्रय मशीनों (एटीवीएम) में स्थानीय भाषा को डिफ़ॉल्ट सेट करवाएँमशीन पर छपे निर्देश अथवा स्टीकर रूप में लगे निर्देश केवल अंग्रेजी में नहीं होने चाहिएउसमें त्रिभाषा सूत्र का पालन करवाएँ तथा नियमानुसार भाषा क्रम स्थानीय भाषाहिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिएन कि पहले अंग्रेजीस्थानीय भाषा और अंत में हिन्दी।
13. स्टेशनों पर लाइसेंस प्राप्त हर दूकान का नामपट (बोर्ड)भोजन-सूची (मेनू)मूल्य-सूची (रेटलिस्ट) आदि में नियमानुसार तीनों भाषाओं के इस्तेमाल का निर्देश जारी करेंज्यादातर दुकानदार केवल अंग्रेजी का इस्तेमाल कर रहे हैं या कुछेक दूकानदार हिंदी को सबसे छोटे अक्षर में अंग्रेजी से नीचे इस्तेमाल करते हैं।इनमें भी भाषा क्रम स्थानीय भाषाहिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिए।  इससे आम और खास सभी यात्रियों को सुविधा रहेगी और सिर्फ अंग्रेजी रेटलिस्टमेनू के माध्यम से दुकानदार आम ग्राहकों को लूट नहीं सकेंगे।
14. भारतीय रेल ने हमेशा राजभाषा हिन्दी प्राथमिकता दी है पर जबसे नए डिब्बे पटरियों पर दौड़ रहे हैंउनमें हिन्दी की उपेक्षा की जा रही है।  पहले आये नए डिब्बों और चेन्नई से हाल में आये नए डिब्बों पर रोमन लिपि में SR बहुत बड़े अक्षरों में लिखा गया है पर कहीं किसी भी डिब्बे पर भी कहीं भी "म.रे." अक्षरों को प्रयोग नहीं किया गया है और चेन्नई से हाल में आये नए डिब्बों पर Central Railway तो लिखा गया है पर "मध्य रेलवे" नहीं।  नए डिब्बों पर प्राथमिक आधार पर अंग्रेजी के समान ही  " म.रे "अक्षरों और  "मध्य रेलवे" को अंकित करवाने की कृपा करें। 
15. राजधानी /शताब्दी गाड़ियों में भोज सूची (मेनू) छापने में हिन्दी की उपेक्षा की जाती हैमेनू पूर्णतः द्विभाषी (हिन्दी -अंग्रेजी) में छपना चाहिए और भाषा क्रम में हिंदी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इन गाड़ियों पर यात्रियों के लिए सिर्फ अंग्रेजी के अखबार ही रखे जाते हैंहिन्दी-मराठी अथवा गुजराती के अखबार नहीं मिलते हैंया तो अंग्रेजी के अखबार रखना बंद करें अथवा हिंदी-स्थानीय भाषा के अखबार भी रखवाने की चेष्टा करें। 

आशा है आप सभी बिन्दुओं पर व्यापक यात्रीहित में सकारात्मक सुधार करेंगेआपके उत्तर की प्रतीक्षा में।  

भवदीय
प्रवीण जैन 
103 आदीश्वर सोसाइटी,
सेक्टर वाशीनवी मुम्बई 400703
प्रस्तुत कर्ता: संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

मंगलवार, 29 मार्च 2016

यात्रा क्रम तृतीय भाग - पर्यटन से बढ़ाये अनुराग, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' *

यात्रा क्रम तृतीय भाग  - पर्यटन से बढ़ाये अनुराग
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
पुस्तक सलिला-
*
[पुस्तक विवरण- यात्रा क्रम तृतीय भाग, संपत देवी मुरारका, प्रथम

संस्करण नवंबर २०१४, पृष्ठ १८०+३०,  मूल्य ३००/-, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, प्रकाशन तारा बुक एजेंसी, सिद्ध गिरि बाग़, वाराणसी, लेखिका संपर्क- ४-२-१०७ / ११० प्रथम तल, श्रीकृष्ण मुरारका पैलेस, बड़ी चोवडी, सुल्तान बाजार, हैदराबाद, ९४४१५११२३८।]
*
हिंदी साहित्य में यात्रा वृत्तांत अथवा पर्यटन साहित्य को स्वतंत्र विधा के रूप में मान्य किये जाने के बाद भी उतना महत्व नहीं मिला जितना मिलना चाहिए। इसके कारण हैं- १. रचनाकारों का गद्य-पद्य की अन्य विधाओं की तुलना में इस विधा को कम अपनाना, २. इस विधा में रचनाकर्म के लिये सामग्री जुटाना कठिन, व्यय साध्य तथा समय साध्य होना, ३. यात्रा वृत्त लिखने के लिये भाषा पर अधिकार, अभिव्यक्ति क्षमता तथा समृद्ध शब्द भंडार होना, ४. यात्रा के समय पर्यटन स्थल की विशेषता, उसके इतिहास, महत्त्व, समीपस्थ सभ्यता-संस्कृति आदि के प्रति, रूचि, समझ, सहिष्णुता होना, ५. विषय वस्तु को विस्तार और संक्षेप में कह सकने की क्षमता और समझ, ६. वर्ण्य विषय का वर्णन करते समय सरसता और रूचि बनाए रखने की सामर्थ्य जिसे कहन कह सकते हैं, ७. प्राय: लम्बे वर्णों के कारण अधिक पृष्ठ संख्या और अधिक प्रकाशन व्यय को वहन कर सकने की क्षमता, ८. स्थान-स्थान पर जाने का चाव, ९. पर्यटन साहित्य सम्बन्धी मानकों का अभाव, १०. पर्यटन साहित्य पर परिचर्चा, कार्यशाला, संगोष्ठी, स्वतंत्र पर्यटन पत्रिका, पर्यटन साहित्य रच रहे रचनाकारों का कोई मंच/ संस्था  आदि का न होना तथा ११. पर्यटन साहित्य को पुरस्कृत किये जाने, पर्यटन साहित्य पर शोध कार्य आदि का न होना।   

विवेच्य कृति यात्रा क्रम तृतीय भाग की लेखिका श्रीमती संपत देवी मुरारका साधुवाद की पात्र हैं कि उक्त वर्णित कारणों के बावजूद वे न केवल पर्यटन करते रहीं अपितु सजगता के साथ पर्यटित स्थानों का विवरण, जानकारी, चित्र आदि संकलित कर अपनी सुधियों को कलमबद्ध कर प्रकाशन भी करा सकीं। किसी संभ्रांत महिला के लिये पर्यटन हेतु बार-बार समय निकाल सकना,  स्वजनों-परिजनों से सहमति प्राप्त कर सकना, आर्थिक संसाधन जुटाना, लक्ष्य स्थान की यात्रा, आवागमन-यातायात-आरक्षण-प्रवास की समस्याओं से जूझना, समान रूचि के साथी जुटाना, पर्यटन करते समय लेखन हेतु आवश्यक जानकारी जुटना, सार-सार लिखते चलना, लौटकर विधिवत पुस्तक रूप देना और प्रकाशन कराना हर चरण अपने आपमें श्रम, लगन, समय, प्रतिभा, रूचि और अर्थ की माँग करता है। संपत जी इस दुरूह सारस्वत अनुष्ठान को असाधारण जीवट,  सम्पूर्ण समर्पण, एकाग्र चित्त तथा लगन से एक नहीं तीन-तीन बार संपन्न कर चुकी हैं। क्रिकेट खेलने वाले लाखों खिलाडियों में से कुछ सहस्त्र ही प्रशंसनीय गेंदबाजी कर पाते हैं, उनमें से कुछ सौ अपने उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिये याद रखे जाते हैं और अंत में तीन गेंदों पर तीन विकेट लेकर मैच जितने वाले अँगुलियों पर गिने जाने योग्य होते हैं। संपत जी की पर्यटन-ग्रंथ त्रयी ने उन्हें इस दुर्लभ श्रेणी का पर्यटन साहित्यविद बन दिया है। उनकी उपलब्धि अपने मानक आप बनाती है।
दुर्योगवश मुझे यात्रा क्रम के प्रथम दो भाग पढ़ सकने का सुअवसर नहीं मिला सका, भाग तीन पढ़कर आनंदाभिभूत हूँ। ग्रंथारम्भ में लेखिका ने अपने पूज्य ससुर जी तथा सासू जी को ग्रंथार्पित कर भारतीय साहित्य परंपरा में अग्रपूजन के विधान के साथ पारिवारिक परंपरा व व्यक्तिगत श्रद्धा भाव को मूर्त किया है। बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ की कुल सचिव सुनीता चंद्रा जी, रंगकर्मी रामगोपाल सर्राफ वाराणसी, श्रेष्ठ-ज्येष्ठ रचनाकारों ऋषभ देव शर्मा जी, डॉ. श्याम सिंह 'शशि' जी, बी. आर. धापसे जी औरंगाबाद, प्रो. शुभदा वांजपे जी हैदराबाद, शिशुपाल सिंह 'नारसरा' जी फतेहपुर सीकर, नथमल केडिया जी कोलकाता, सरिता डोकवाल जी, एन. एल. खण्डेलवाल जी, चंद्र मौलेश्वर प्रसाद जी सिकंदराबाद, शशिनारायण 'स्वाधीन', डॉ. अहिल्या मिश्र हैदराबाद, बिशनलाल संघी हैदराबाद, पुष्प वर्मा 'पुष्प' हैदराबाद, आदि की शुभाशंंषाएँ व सम्मतियाँ इस ग्रन्थ की शोभवृद्धि करने के साथ-साथ पूर्व २ भागों का परिचय भी दे रही हैं। 

पर्यटन ग्रन्थ माला की यह तीसरी कड़ी है। आंकिक उपमान की दृष्टि से अंक तीन त्रिदेव (ब्रम्हा-विष्णु-महेश), त्रिनेत्र (२ दैहिक, १ मानसिक), त्रिधारा (गंगा-यमुना-सरस्वती), त्रिलोक (स्वर्ग-भूलोक-पाताल), त्रिकाल (भूत-वर्तमान-भविष्य), त्रिगुण (सत्व, रज, तम), त्रिअग्नि (भूख, अपमान, अंत्येष्टि), त्रिकोण,  त्रिशूल (निर्धनता, विरह, बदनामी), त्रिराम (श्रीराम, परशुराम, बलराम), त्रिशक्ति (अभिधा, व्यंजना, लक्षणा), त्रि अवस्था (बचपन, यौवन, बुढ़ापा), त्रि तल (ऊपर मध्य, नीचे), त्रिदोष (एक, पित्त, वात), त्रि मणि (पारस, वैदूर्य, स्यमंतक) का प्रतीक है। 

विवेच्य कृति की अंतर्वस्तु ९ अध्यायों में विभक्त है। भारतीय वांग्मय में ९ एक गणितीय अंक मात्र नहीं है। ९ पूर्णता का प्रतीक है। नौ गृह, नौगिरहि बहुमूल्य नौगही (हार), नौधा (नवधा) भक्ति, नौमासा गर्भकाल, नौरतन (हीरा, मोती, माणिक्य, मूँगा, पुखराज, नीलम, लहसुनिया,) नौनगा, नौलखा, नौचंदी, नौनिहाल, नौ नन्द, नौ निधि, कोई भी उपमा दें, ये ९ अध्याय नासिक महाकुंभ की यात्रा, ओशो धारा में अवगाहन, कोलकाता की यात्रा, पूर्वोत्तर की यात्रा, यात्रा दिल्ली की, राजस्थान यात्रा भाग १-२ तथा स्वपरिचय  पाठक को घर बैठे-बैठे ही मानस-यात्राऐं संपन्न कराते हैं।  

३ और ९ (३ का ३ गुना) का अंकशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र तथा वस्तु शास्त्र  के अनुसार विलक्षण संबंध है।  पृष्ठ संख्या १८० = ९ + ३० = ३ योग २१० = ३ इस सम्बन्ध को अधिक प्रभावी बनाता है।  ग्रंथ में शुभ सम्मतियों की संख्या १५ = ६  (३ का दोगुना) है। संपत जी ने नासिक, शिर्डी, दौलतबाडी, कोलकाता,  दार्जिलिंग, गंगटोक, जलपाई गुड़ी, गुवाहाटी, कांजीरंगा, अग्निगढ़, तेजपुर, शिलॉन्ग, चेरापूंजी, दिल्ली, जयपुर, लक्ष्मणगढ़, सीकर, रामगढ, मंडावा, झुंझनू, चुरू, रतनगढ़, बीकानेर, जूनागढ़, रामदेवरा, लक्ष्मणगढ़, रणथंभोर, पुष्कर, मेड़ता, नागौर, मण्डोर, मेहरानगढ़, जैसलमेर, तनोट, पोखरण, बीकानेर आदि ३६ मुख्य स्थानों की यात्रा का जीवन वर्णन किया है। ३६ का योग ९ ही है। संपत जी की जन्म तिथि ३० = ३ है, माह ६ = तीन का दोगुना है। इस यात्रा में लगे दिवस, देव-दर्शन स्थल, प्रवास स्थल आदि में भी यह संयोग हो तो आश्चर्य नहीं।

ओशो धारा में अवगाहन इस कृति का सर्वाधिक सरस और रोचक अध्याय है। यह पर्यटन के स्थान पर ओशो प्रणीत ध्यान विधि में सहभागिता की अनुभूतियों से जुड़ा है। शेष अध्यायों में विविध स्थानों की प्राकृतिक सुषमा,  पौराणिक आख्यान, ऐतिहासिक स्थल, घटित घटनाओं की जानकारी, स्थान के महत्व, जन-जीवन की सामाजिक-सांस्कृतिक झलक आदि का संक्षिप्त वर्णन मन-रंजन के साथ ज्ञान वर्धन भी करता है। इन यात्राओं का उद्देश्य दिग्विजय पाना, नव स्थल का नवेशन करना, किसी पर्वत शिखर को जय करना, राहुल जी की तरह साहित्य संचयन, विद्यालंकार जी की तरह शवलिक के जंगलों की शिकार गाथाओं की खोज, अथवा नर्मदा परकम्मावासियों की तरह  नदी के उद्गम से समुद्र-मिलन तक परिक्रमा करना नहीं है। सम्पत जी ने सामान्य जन की तरह धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक महत्त्व क स्थलों तक जाकर उनके कल और आज को खँगालने के साथ-साथ कल की सम्भावना को यत्र-तत्र निरखा-परखा है।

राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से हर देशवासी को देश के विविध स्थानें की सभ्यता, संस्कृति, आचार-विचार, आहार-विहार, कला-कौशल आदि से परिचित होना ही चाहिए। यह कृति अपने पाठक को देश के बड़े भूभाग से परिचित कराती है। अधिकांश स्थानों पर लेखिका ने उस स्थान से जुडी पौराणिक-ऐतिहासिक जनश्रुतियों, कथाओं आदि का रोचक वर्णन किया है। इस प्रयत्न वृत्तांत श्रंखला के माध्यम से लेखिका ने अपन अनाम राहुल सांकृत्यायन, सेठ गोविंददास, देवेन्द्र सत्यार्थी, मोहन राकेश, अज्ञेय, रांगेय राघव, रामकृष्ण बेनीपुरी, निर्मल वर्मा, डॉ. नगेंद्र, सतीश कुमार आदि की पंक्ति में सम्मिलित करा लिया है।

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- समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ९४२५१ ८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com 
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com 
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

"शहीदी दिवस पर अमर शहीदों को शत शत नमन !"



"शहीदी दिवस पर अमर शहीदों को शत शत नमन !"

अमर शहीदों को नमन ,
रखे सजो कर याद !
उन सब के बलिदान से ,
हम सब है आज़ाद !!
                           -कवि कृष्णा नन्द तिवारी
पाश्चात्य देशों में होली
                                            - कादम्बरी मेहरा , लंदन 
 माननीय गुप्ता जी एवं हिंदी प्रेमियों , 
होली का त्यौहार आप सबको मुबारक हो।  

आप सबको यह जानकार हर्ष होगा कि होली का त्यौहार अब लंदन के स्कूलों में धार्मिक शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम में शामिल है।  कक्षा ५ और ६ के बच्चों को अनेक स्कूलों में इसके विषय में बताया जाता है।  सुन्दर सरल भाषा में अंग्रेजी में किताबे छप गयी हैं जो बच्चे समझ सकते हैं।  इसे वसंत ऋतू के आगमन से जोड़ा जाता है और '' पानी '' के महत्व  का भी संवाहक कहा जाता है।   हमारा यह उत्सव अब विश्व में एक अन्य सन्देश के लिए प्रयुक्त हो रहा है।  यह त्यौहार मार्च के अंतिम  सप्ताह में आता है।  अतः २२ मार्च को '' विश्व  जल  दिवस '' घोषित कर दिया गया है।  एक अमेरिकी संस्थान नेस्ले जल योजना के अंतर्गत विश्व भर के स्कूलों में जल से होली खेलने का त्यौहार मनाया जाता है और इसी के साथ बच्चों को जल के बारे में शिक्षित किया जाता है।  इस योजना को WET नाम दिया गया है।  

अमेरिका के शहर सीएटल में एक संस्था '' सीएटल पार्टी कैंप '' ने एक आयोजन किया जिसे  '' विश्व का सबसे बड़ा जल युद्ध '' का नाम दिया।  सभी ने सड़कों पर पानी से होली खेली और इस के एवज में पैसा दान किया।  ५५ ००० डॉलर की रकम जमा हुई जो बालकों की जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए  अनुसंधान करनेवाली दवाई कंपनी '' कैंप कोरी ''  को  दे दी गयी। 
न्यू यॉर्क के शहर के बीच स्थित सेंट्रल पार्क के विशाल लॉन में भी २९ जून २०१३ में एक विशाल जल होली का आयोजन किया गया।  
 
इंगलैण्ड के ट्रफलगर स्क्वायर में जल से होली खेलने का रिवाज़ चल पड़ा है। जब मौसम बेहद गरम होता है यहां  दीवाने होली खेलते हैं।  ऐसा ही कई स्कूलों में भी रवाज चल पड़ा है पर यह छोटे बच्चों तक ही सीमित है और केवल समर में होता है।  अलबत्ता घरों में जिनके पास बड़े लॉन हैं वह होली की पार्टियां मनाने लगे हैं  मगर वह मौसम के अनुसार मनाई जाती हैं।  अतः मार्च में न होकर जून जुलाई या अगस्त की छुट्टियों में होती हैं।  

यूरोप में रहकर अनेक ऐसे रिवाज़ों से पाला पड़ा जो होली का ही प्रारूप हैं। जब कोई  पोत समुद्र यात्रा के समय विश्वत रेखा को लांघता है तो बड़ा उत्सव मनाया  जाता है। यात्री शैम्पेन पीते  हैं और  एक दूसरे को टमाटर अंडे केक पास्ता आदि से सराबोर कर देते हैं। आइस क्रीम युद्ध होता है और जब सब चुक जाता है तो एक दूसरे पर पानी की बौछार करते हैं।  बड़े जहाज़ों में स्विमिंग पूल होता है ,उसमे फेंक देते हैं। हाँ यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि आपको तैरना आता है।   

स्पेन में देखा टमाटर दिवस।  यह टमाटरों से होली खेलने का और सड़कों पर हुड़दंग मनाने का दिन होता है।  इसे '' ला टोमाटीना '' कहा जाता है।  इटली में इसी का  रूपांतर है दी बैटल ऑफ़ दी ऑरैंजेस।  यह लोग नरंगियाँ फेंकते हैं एक दूसरे पर। होली खेलने का शौक कुछ ऐसा सर चढ़  के बोलने  लगा है दुनिया भर में कि दक्षिणी कोरिया की एक सौंदर्य प्रसाधन बनानेवाली कंपनी ने बोरयांग मड फेस्टिवल  की शुरुआत कर डाली।  बोरियोंग स्थान के मिटटी के टीले प्रसिद्ध हैं। इनकी मिटटी देह पर मलने से रूप निखर आता है।  कंपनी ने इस मिटटी से उबटन बनाया और बाज़ार में उतारा।  प्रचार के लिए पैसा बचाने की खातिर उन्होंने मुफ्त इस मिटटी का लेप लगाकर शहर भर में लोगों को घुमाया ,दावत की , पटाखे चलाये। नाच गाना ,ढोल तमाशे किये फिर पानी की नालियां लगाकर सबको नहलाया। वाह वाह ! क्या आनंद आया जनता को।  लो जी शुरू हुई एक नई होली बोरियोंग  मड फेस्टिवल। अब यह दक्षिणी कोरिया का राष्र्टीय त्यौहार बन गया।  

भारत की जड़ें जिन देशों में जमी हैं सदियों से उनमे होली धूम धाम से मनाई जाती है।  ताइवान  का सोंगक्रान त्यौहार इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है।  यह  राष्ट्रिय पर्व है और इस दिन सरकार की ओर से शहर भर में पानी से होली खेली जाती है।  मनो पानी की बड़ी बड़ी नलियाँ लगाकर सड़कों पर छोड़ दी जाती हैं।  म्यांमार में भी यही रिवाज है मगर यह लोग इस दिन को थिंग यान कहते हैं।  इस दिन जरूर कोई अच्छा काम किसी दूसरे के लिए करते हैं।  थाईलैंड और मलेशिया में भी होली खेली जाती है परन्तु इतने जोश से नहीं क्योंकि इन देशों में इस्लाम धर्म राजकीय धर्म है। अतः यह केवल हिन्दू मनाते हैं।  बौद्ध धर्म के साथ  भी हिन्दू त्यौहार जुड़े रहे किसी न किसी रूप में अतः जहां जहां भी बौद्ध धर्म गया होली या जल सिंचन का रिवाज़ भी गया।  चीन का '' दाई '' त्यौहार पूरे तीन दिन चलता है।  पहले दिन मेला लगता है और लोग नयी वस्तुएं खरीदते हैं।  दूसरे दिन लैन्कांग नदी में दीये तैराते हैं और प्रार्थना करते हैं।  तीसरे दिन खूब सज बज के शहर के बौद्ध मंदिरों में जमा होते हैं और एक दूसरे  पर केवल पानी की वर्षा करते हैं।    पूर्वी देशों में बाली , जावा , सुमात्रा ,अक्षय ( अछेह ) , कम्बोडिया , श्री लंका  आदि देशों में होली जीवित है।  

एक बार लंदन में ही एक सखी ने कहा ,होली का उत्सव मनाया जा रहा है चलो। संग हो ली।  पहले भजन गाए गए। फिर बारी आई फ़िल्मी गानो की। अनेकों ने अपनी प्रतिभा अनुसार रंग जमाया।  कोई भी अंग्रेजी नहीं बोल रहा था।  भाषा पल्ले नहीं पड़ रही थी मगर गाने तो हमारे ही थे और साड़ियां भी हमारी ही थीं।  वही केश विन्यास ,वही गहने।  वही राम ,लखन।  फिर जी स्टेज पर आये करीब आठ व्यक्ति।  चौकड़ी मार कर बैठ गए।  बाजा ,मंजीरा ,ढोलक ,चिमटा ,और शुरू किया 
''  हे हां &&&&, लता कुञ्ज से प्रकट भये ,तेहि अवसर दोउ भाई। -----  ''
ठेठ बनारसी अंदाज में जो सीता स्वयम्बर का सस्वर गायन हुआ , मेरे रोंगटे खड़े हो गए।  पूरे तीस वर्ष बाद मैं यह रामायण सुन रही थी जो हमारे बगीचे में होनेवाली रामलीला में सुना करती थी बचपन में। और केक पर आइसिंग ---  अवध में होरी खेरें रघुबीरा !  क्या समा था।  नॉस्टेलजिया का असली मतलब उस दिन समझ में आया।  आँखों से झर - झर  आंसू। तभी किसी ने मुझपर पाउडर की वर्षा शुरू कर दी।  मैंने अंग्रेजी में कहा ,'' दिस म्यूजिक इस फ्रॉम बनारस ''. अगली ने प्यार से कहा , '' सो वर आवर एन्सेस्टर्स ''. यह लंदन में बसे  त्रिनिदाद के लोगों का उत्सव था।  यह लोग बिहार और उत्तर प्रदेश से ले जाए गए थे गन्ना उगाने  के लिए। इन्होंने संभाल रखी है वह अमूल्य सम्पदा जो हमारे देश में भी रंग छोड़ रही है. वह संगीत ,वह त्योहारों की आत्मा।  इन्हें हिंदी बोलनी नहीं आती मगर जो आता है वह हमारा है। ऐसे ही देश हैं ,सूरीनाम ,गयाना और मॉरीशस। दक्षिणी अफ्रीका ,यूगांडा और कीनिया आदि में भी हमारे त्यौहार रंग जमाते हैं।     
 
पानी और रंगों के इस खेल का प्रभाव अब विश्वव्यापी होता जा रहा है।  मगर भारत पानी के क्षेत्र में पिछड़े हुए देशों में से एक है जबकि यहां सबसे अधिक नदियां और सबसे अधिक वर्षा होती है।  इसका कारण केवल जनता की उदासीनता और अज्ञानता है।  हमारे साधू संत यदि अपनी वंदना करवाने के बजाय देश के गाँवों में  पानी के  महत्त्व का ज्ञान संचार करें तो  कितना अच्छा हो।  समय आ गया है कि हम अपने त्योहारों को आधुनिक जीवन से जोड़कर ज्ञान का माध्यम बनाएं।  

- कादम्बरी मेहरा , लंदन 
                ३५ ,दी एवेन्यू , चीम ,सरे , यु के   




डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच.
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

कादम्बिनी क्लब ने किया भ्रमण का आयोजन, समाचार कतरन-स्वतंत्र वार्ता


प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com

लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

सोशल मीडिया पर हिंदी के प्रसार का वृहत् वैश्विक अभियान


बैनर
सोशल मीडिया पर हिंदी के प्रसार का वृहत् वैश्विक अभियान 
वैश्विक हिंदी सम्मेलन -  गूगल समूह - फेसबुक समूह - व्हाट्सऐप समूह - जी +

बीकानेर में रचा विश्व सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन ने एक रिकॉर्ड
12822055_10206165039780121_1253645973_nबीकानेर। विगत दिनों जब देश के कोने-कोने और विभिन्न अन्य देशों की सोशल मीडिया से जुड़ी विभिन्न विधाओं की सौ के करीब प्रतिभाएँ एक मंच पर इकट्ठा हुईं और उन्होंने अपनी प्रतिभाओं के जौ़हर दिखाये तो सच् एक रिकार्ड ही बन गया। जी हां, हम सब साथ साथ, नई दिल्ली के तत्वावधान में और स्थानीय संस्थाओं; साहित्यिक-सामाजिक संस्था, बीकाणा आईटीआई तथा हिन्दी साहित्य मंथन आदि के सहयोग से राजस्थान के बीकानेर में 5 और 6 मार्च को चैथा सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन व सम्मान समारोह स्थानीय रेल्वे प्रेक्षागृह में समारोहपूर्वक आयोजित हुआ। इसमें फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर आदि जैसी आभाषी कही जाने वाली सोशल साइट्स की सैकड़ों प्रतिभायें न केवल पहली बार एक-दूसरे से रूबरू हुईं अपितु एक प्लेटफार्म पर पहली बार इकट्ठा होकर उन्होंने मैत्री-भाईचारे का एक इतिहास भी रचा। उनकी प्रतिभाओं ने सैकड़ों लोगों को उंगली दबाने पर भी मज़बूर किया। 
मैत्री-भाईचारे के पैग़ाम के साथ शुरू हुए दो दिन के इस सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका, कन्या भ्रूण हत्या, लिव इन रिलेशनशिप पर परिचर्चा के अलावा दो सत्रों में कवि सम्मेलन, मनोहारी सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुस्तकों का विमोचन और चित्र, फोटो तथा कार्टून प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में देश के विभिन्न दूर-दराज के प्रान्तों सहित नेपाल, कनाडा और यूके से एक प्रतियोगिता के जरिये चुन कर आई फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्वीटर आदि सामाजिक साइट्स की आभाषी दुनिया की साहित्य, संगीत, नृत्य और कला क्षेत्रों की सौ के करीब प्रतिभाओं ने अपनी विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन से उपस्थित जन समुदाय को मंत्र मुग्ध कर दिया। 2146a1d2-382d-4ba4-b90f-5bb5739494b5
पहले दिन कला प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रसिद्ध चित्रकार मुरली मनोहर माथुर और कनाडा से पधारे हिन्दी विद्वान सरन घई द्वारा किया गया। जिसमें विवेक मित्तल (बीकानेर) एवं संगीता राज (दिल्ली) के चित्र, मीता रॉय (गाजियाबाद) एवं सृष्टि सिन्हा (झांसी) के कार्टून्स, प्रदीप आर्यन (दिल्ली) के फोटो और हर्षित सिंह (लखनऊ) के हस्त शिल्प का प्रदर्शन किया गया। तत्पश्चात् उद्घाटन सत्र की शुरूआत दिल्ली से पधारीं सुषमा भण्डारी ने अपने मधुर कंठ से कर्ण प्रिय राजस्थानी सरस्वती वंदना गाकर की। वन्दना के बाद सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक श्री किशोर श्रीवास्तव (दिल्ली) व उनकी टीम (शाह आलम, किरन बाला, शशि श्रीवास्तव, मीता राय एवं सरिता भाटिया) ने ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा’ गीत सुनाकर आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश देकर सभी आगंतुकों को भाव विभोर कर दिया। प्रथम सत्र के मुख्य और विशिष्ट अतिथि थे भाजपा नेता नंदकिशोर सोलंकी, राजस्थानी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सत्य प्रकाश आचार्य व उद्योगपति के.बी. गुप्ता। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कनाडा से पधारे सरन घई ने की, जबकि स्वागताध्यक्ष बीकानेर के मुख्य आयोजनकर्ता गोवर्धन चैमाल थे। 
सभी अतिथियों ने अपने उद्बोधन में भाईचारे और मैत्री के इस सम्मेलन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। सत्र का बेहतरीन मंच संचालन संजय पुरोहित ने किया। प्रथम सत्र में ही सभी प्रतिभागियों का परिचय उन्हें बार-बारी से मंच पर आमंत्रित करते हुए श्री किशोर श्रीवास्तव ने कराया। इस अवसर पर मुंबई की प्रतिभागी लता तेजेश्वर की अंग्रेजी पुस्तक ‘वेव्स आॅफ लाइफ’ और किशोर श्रीवास्तव के कहानी संग्रह ‘कही-अनकही’ का विमोचन भी माननीय अतिथियों द्वारा किया गया। ‘मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका’ और सोशल मीडिया के खट्टे-मीठे अनुभवों पर आधारित सम्मेलन के परिचर्चा सत्र में मुख्य अतिथि कमल रंगा, विशिष्ट अतिथि गार्गी राय चैधरी रहीं तथा अध्यक्षता मालचंद तिवाऱी ने की। परिचर्चा सत्र में अपने विचारों की गंगा बहाने वालों में शामिल थे; अमित साकिरवाल (लखनऊ), रायपुर से अमृता शुक्ला, बीकानेर से डॉ. अजय जोशी, विवेक मित्तल, सीमा भाटी, डॉ. पंकज जोशी, नीलिमा शर्मा, अपूर्वा चैमाल, दिल्ली से किरण बाला, सुरभि सप्रू, विपनेश माथुर, किरण आर्य, श्रीगंगानगर से दीपक अरोड़ा, चित्रकूट से पियूष द्विवेदी, सहारनपुर से ऊंची उड़ान पत्रिका के संपादक पवन शर्मा, गौर (नेपाल) से प्रभा सिंह, देहरादून से राहुल वर्मा, नोएडा से सोमा बिश्वास, अयोध्या से शाह आलम, जयपुर से सुरेश शर्मा, बारांबकी से सुमन श्रीवास्तव, शाहजहांपुर से डा. देशबन्धु आदि। इस सत्र में स्वागताध्यक्ष सुधीर सिंह सुधाकर थे और बेहतरीन मंच संचालन श्री नासिर जैदी ने किया। 
सायंकालीन सत्र में भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसका कुशल मंच संचालन सुशील कौशिक (बीकानेर) एवं अनुपमा श्रीवास्तव (भोपाल) ने संयुक्त रूप से किया। इस सत्र की मुख्य अतिथि अल्का डॉली पाठक थीं। नृत्य के क्षेत्र में सिक्किम के गंगतोक से पधारी प्रतिभाशाली बाल प्रतिभागी कु. अस्मिता शर्मा एवं दिल्ली की कु. वन्या कंचन सिंह सहित रांची से पधारी युवा कलाकार संदीपिका राय ने अपने खूबसूरत कला प्रदर्शन से उपस्थितजनों को मंत्र मुग्ध करते हुए दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया। इसी प्रकार से गायन में हल्द्वानी से गौरी मिश्रा, श्रीगंगानगर से दीपक अरोड़ा, गाजियाबाद से मीता रॉय, भीलवाड़ा से निरंजन नीर, दिल्ली से पारूल रस्तोगी सहित बीकानेर से डॉ. मोहम्मद इकबाल, ओमप्रकाश सोनी, हसन अली, पवन सोनी और सुमधुर गायिका लता तिवारी ने अपने गीतों से उपस्थितजनों का खूब मनोरंजन किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान ही किशोर श्रीवास्तव की गीतों और हास्य भरी मिमिक्री ने न केवल श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया अपितु हंसा-हंसा कर लोटपोट भी किया। तबले पर लाजवाब संगत की चुरू से पधारे प्रतिभागी राजेन्द्र शर्मा ने।72b3b47e-d9c0-4875-b6bf-1355bad85895
रात्रिकालीन सत्र में कवि सम्मेलन (पार्ट एक) का आयोजन किया गया, जिसका मंच संचालन बीकानेर के संजय आचार्य तथा आबू रोड पिण्डवाड़ा से पधारीं आशा पाण्डेय ओझा ने संयुक्त रूप से  अत्यन्त सलीके से किया। कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि मो. हनीफ ‘शमीम’ बीकानेरी, विशिष्ट अतिथि इंजी. आशा शर्मा (बीकारनेर) और हरकीरत हीर (गुवाहटी) थीं। इस सत्र की अध्यक्षता कोटा से पधारे वरिष्ठ कवि रघुनाथ प्रसाद मिश्र ‘सहज’ ने की। कवि सम्मेलन में बीकानेर से जाकिर अदीब, आनंद आचार्य, बुनियाद ज़हीन, राजेन्द्र स्वर्णकार, मीनाक्षी स्वर्णकार, बाबूलाल छंगाणी, इरशाद अजीज, मनीषा आर्य,; फरीदाबाद से अजय अज्ञात, चुरू से राजेन्द्र शर्मा, दिल्ली से शुभदा वाजपेयी, सुषमा भण्डारी व नेहा नाहटा, गुवाहटी से चंद्र प्रकाश पोद्दार, जयपुर से विनीता सुराना आदि सहित संचालक द्वय व मंचस्थ अतिथियों ने भी काव्य पाठ किया और खूब वाहवाही लूटी। 
दूसरे और अंतिम दिन 6 मार्च को सम्मेलन की शुरूआत दो ज्वलंत विषयों पर परिचर्चा के साथ हुई, विषय थे- कन्या भ्रूण हत्या व लिव इन रिलेशनशिप। चर्चा के लिए खुला मंच था, जिसमें अनेक प्रतिभागियों ने इन विषयों पर विस्तृत चर्चा की। शशि श्रीवास्तव, नेहा नाहटा व किरण बाला ने इस सत्र का मंच संचालन संयुक्त रूप से किया। इस सत्र के मुख्य अतिथि धर्मचंद जैन, विशिष्ट अतिथि, पूर्व कर्नल प्रेम दास निगम, श्याम स्नेही व अतुल प्रभाकर थे तथा अध्यक्षता मुरली मनोहर के माथुर ने की। इस सत्र में अतिथियों ने भी अपने विचार रखे। इसके बाद कवि सम्मेलन का दूसरा सत्र आरम्भ हुआ, जिसकी अध्यक्षता यूके से पधारी शील निगम ने की। मुख्य अतिथि थे भवानी शंकर व्यास व विशिष्ट अतिथि उषा किरण सोनी थीं। मंच संचालन नमिता राकेश व अरविंद पथिक ने संयुक्त रूप से किया। कवि सम्मेलन के इस सत्र में दिल्ली से बादल चैधरी, सुधीर सिंह, संजय शाफ़ी, नरेश मलिक, सरिता भाटिया, शाहजहांपुर से देशबंधु, चम्पावत से कैलाश चंद्र जोशी, मुंबई से लता तेजेश्वर, नौएडा से सीमा गुप्ता शारदा, लखनऊ से निवेदिता श्रीवास्तव, राहुल द्विवेदी, सीकर से निर्मला मुस्कान बरवड़, ग्वालियर से पियूष चतुर्वेदी, वारासिवनी से प्रीति सुराना, राहुल द्विवेदी, मुंबई से लता तेजेश्वर, सरोज लोढाया, गुड़गांव से श्याम स्नेही, कंचनपुर (नेपाल) से सरिता पंथी, तेजपुर (असम) से सरिता शर्मा, भिवानी से डा. अनीता भारद्वाज, बीकानेर से मोनिका गौड़, कासिम बीकानेरी, सरदार अली पडि़हार, गोविंद नारायण, अब्दुल वाहिद अशरफी, कृष्णा आचार्य, गजेन्द्र सिंह राजपुरोहित और बड़ोदरा से वीरेन्द्र सिंह, बारासिवनी से प्रीति समकित सुराना, ग्वालियर से पियूष चतुर्वेदी, आदि प्रतिभागियों ने अपने बेहतरीन काव्य पाठ से लोगों को बार बार तालियां बजाने पर मजबूर किया। 826a9480-0dbc-45e3-9128-977d4924a88a
सम्मेलन का सबसे भावुक क्षण समापन सत्र का रहा, जब चैथे सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन के चयनित प्रतिभागियों को सम्मानित किये जाने के साथ ही उनकी बिदाई का समय आया। पुरस्कार वितरण समारोह का संचालन करते हुए प्रतिभागियों के महत्व और उनकी खूबियों को दर्शाने वाली काव्य पंक्तियों से सत्र के संयोजक, संचालक किशोर श्रीवास्तव ने माहौल को और भी अधिक रोचक और भाव विभोर कर दिया। समापन सत्र की अध्यक्षता लक्ष्मीनारायण रंगा ने की, जबकि मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि क्रमशः भवानीशंकर शर्मा, नेमचंद गहलोत व अल्का डॉली पाठक रहीं। प्रतिभागियों का अंग वस्त्र पहनाकर स्वागत करते हुए उन्हें स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र व पुरस्कार स्वरूप बहुमूल्य किताबों का सेट भेंट किया गया। पूरे सम्मेलन की बेहतरीन फोटोग्राफी के लिये विशाल आर्यन व वीडियोग्राफी के लिये वैशाली आर्यन को भी सम्मानित किया गया। 
इस अवसर पर अतिथियों और अध्यक्ष महोदया ने समूचे आयोजन की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए न केवल मैत्री-भाईचारे की इस भावना की प्रशंसा की अपितु इसे बीकानेर की धरती को भी गौरवान्वित करने वाला पल बताया। सभी ने ऐसे आयोजन की महत्ता पर भी बल दिया। अंत में सम्मेलन की ओर से स्थानीय संयोजक गोवर्धन लाल और राजाराम स्वर्णकार ने सभी प्रतिभागियों और सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कुल मिलाकर एक शानदार कार्यक्रम का अत्यन्त खुशनुमा माहौल में न केवल आगाज़ हुआ अपितु समापन भी उसी अंदाज़ में हुआ। सम्मेलन में पारम्परिक जलपान, भोजन के अलावा राजस्थानी मेहमाननवाज़ी का भी बेजोड़ नमूना देखने को मिला जहां बीकानेर से स्थानीय संयोजक गोवर्धन लाल चैमाल, राजाराम स्वर्णकार, विनोद धानुका, आशा शर्मा, मुनीन्द्र अग्निहोत्री, क़ासिम बीकानेरी और अनिल मिश्रा आदि सहित दिल्ली से पधारे राष्ट्रीय संयोजक किशोर श्रीवास्तव और शशि श्रीवास्तव आदि की टीम ढेर सारे मेहमानों की पल पल की खबर रखते हुए उनका बराबर ख़्याल रखे रही। और उनके हर सुख-दुख में बराबर के शरीक रहे। 
सम्मेलन का मुख्य आकर्षण सभी प्रतिभागियों का बड़ा सा पोस्टर कोलाज़ भी रहा जहां, दोनों दिन विभिन्न अंदाज़ों में फोटो खिंचवाने और मीडिया को इंटरव्यू देने वालों का कुछ इस तरह से जमावड़ा लगा रहा मानों वह कोई ऐतिहासिक पर्यटन केंद्र हो। अपने तरह के इस पहले और अनूठे सम्मेलन के ज़रिये आभाषी दुनिया से जुड़े सैकड़ों व्यक्ति पहली बार समूचे विश्व का प्रतिनिधित्व करते हुए आपस में एक दूसरे से, उनकी प्रतिभाओं से तो रूबरू हुए ही; दो दिन साथ-साथ रहने से पुरानी दोस्ती भी और प्रगाढ़ हुई और अनेक नये मित्र भी बने। जाते-जाते सभी अपने साथ अनेक मीठी-मीठी यादें भी समेटे हुए ले गये। सबने माना कि ऐसे कार्यक्रमों की समूचे विश्व में आवश्यकता है और इन सम्मेलनों से दोस्ती मात्र औपचारिकता बनकर नहीं रह जाती, बल्कि आपसी प्रेम, भाईचारा, सोहार्द की भावना का भी खूब विकास होता है, जो आज कुछ लोगों के अलगाववाद और वैमनस्य फैलाने वाले माहौल में निहायत ज़रूरी भी हैं।
 
रिपोर्टः शशि श्रीवास्तव, संपादक (हम सब साथ साथ), नई दिल्ली मो. 880518246, 9868709348
पताः सैक्टर-4/321, आर. के. पुरम, नई दिल्ली-110022 
 
 वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच 
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद