- "मलेशिया का हृदय-क्षेत्र कुआलालंपुर"
क्रूज यात्रा का अनुभव मेरे लिए सचमुच आह्लादकारी था | इस क्रम में हमने तीन प्रमुख स्थानों का परिभ्रमण पूरा कर लिया था | हम अंतिम गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे | निस्तब्ध रजनी के आगोश में जब प्रकृति देवी निद्रा मग्न अवस्था में प्रशांत थीं, तब भी हमारा क्रूज अविराम गति से अपने गंतव्य की ओर बढ़ता जा रहा था | सोने को तो मैं भी अपने बर्थ पर निद्रा देवी का आह्वान करती रही, लेकिन न जाने कौन सी अलौकिक अनुभूति मुझे जागरण के नव सन्देश में विजड़ित किये हुए थी| बहुत देर तक करवटें बदलने के बावजूद जब मैं नींद को अपनी पलकों तक नहीं बुला सकी, तो मुझे बिस्तर छोड़ देना ही श्रेयस्कर लगा | मैं डेक पर चली आई | इतना प्रशांत और मनमोहक वातावरण शायद ही मुझे जीवन में कभी देखने को मिला था | दृष्टि-पथ में दूर-दूर तक समुद्र का अनंत विस्तार और आकाश का सुरमई अँधेरा, जिसके चित्रपट पर अब भोर की सुनहरी किरणें अपना नव-जागरण का अभिलेख लिखने को आतुर थीं, इतना सजीव और जीवंत प्रतीत हो रहा था, जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता | समुद्र की लहरों से अठखेलियाँ करते हवा के मद्धिम-मद्धिम झोंके सांसों को चेतना के शिखर-बिंदु तक खींचे लिए जा रहे थे | निशा का यह अवसान काल अपनी श्याम-सुन्दर छवि में तारावलियों की झीनी चादर ओढ़े सलज्ज भाव से कपोलों को अरुणाभ कर रहा था | इन तमाम दृश्यों में खो जाना मुझे जीवन की सार्थकता का बोध करा रहा था |
इस छवि-सुषमा के आलोक में जलयान अपने गंतव्य-पथ की ओर निरंतर आगे बढ़ रहा था| सब कुछ इतना स्पृहणीय आह्लादकारी था कि मेरे मन-वीणा के तार बज उठे थे | इस आत्म-चेतना का प्रवाह अब मेरी धमनियों में बहते रक्त के साथ संचरित होने लगा था | हमारी इस यात्रा का अंतिम पड़ाव कुआलालंपुर ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा था, त्यों-त्यों मेरा मन और अधिक उत्सुक हो रहा था | कुआलालंपुर और मलेशिया के बारे में मैंने पहले से बहुत कुछ सुन रखा था | मेरी इस जानकारी के अनुसार एक खिले हुए कमल की भाँति मलेशिया १४ सुन्दर राज्यों का समुच्चय है और कुआलालंपुर उसके मध्य की गर्भ-नाल जैसा है | देखते-देखते सुबह हो गई और मैं विमुग्ध-भाव से प्रकृति को चित्रपट पर रंग-बदलते और भरते देखती रही | पल में कुछ और पल में कुछ ! सागर का गर्जन मेरे कर्ण-कुहरों को अपनी ध्वनि-तरंगो से इस प्रकृति-नटी के ताल-नृत्य का एक अलौकिक अनुभव दे रहा था | मैं डेक से नीचे उतर आई और नित्य-क्रियाओं से निवृत होकर जलयान के समुद्र तट पहुँचने का इंतज़ार करने लगी |
२८-०६-२००८ का दिन जलयान के कुआलालंपुर के मुख्य बंदरगाह क्लेंग तक पहुंचाते-पहुंचाते दिन के ९ बज गए | बंदरगाह क्या था प्रकृति की गोद में खेलते सुन्दर शिशु जैसा लगा | बंदरगाह ने मेरे सहित लगभग सभी यात्री के मन में इस द्वीप के सुषमा-सौन्दर्य के अवलोकन की एक उत्फुल्ल कामना जगा दी | वैसे मेरे मन को यह बात कचोट गई कि हमारा यात्रा कार्यक्रम समय-वाधित है और उसके भीतर पूरी तरह अवलोकन का आनंद अर्जित नहीं किया जा सकता | सबने अपने-अपने कार्डों की इंट्री कराई और यात्रा के लिए तट पर खड़ी बसों में सवार हो गए | प्रबंधकों ने हर बस में एक गाइड की व्यवस्था की थी | मेरी बस की गाइड एक महिला थी, जिसका नाम काटिजा था बस ने रफ्तार पकड़ी और उसके साथ ही गाइड ने कुआलालंपुर का महिमा-गान शुरू कर दिया | इसके पहले बस के सभी यात्रियों को मलेशिया की ५० वीं स्वतंत्रता-वर्षगाँठ पर कुछ उपहार भी भेंट किया गया | हमने पहली बार गाइड के मुख से सुना कि मलेशिया दो राजधानियों वाला शहर है | एक राजधानी कुआलालंपुर तो है ही, एक दूसरी राजधानी है पूत्रजाया | पूरे राज्य में शनिवार और रविवार छुट्टी का दिन होता है | यहाँ की भाषा में कुआलालंपुर का अर्थ होता है कीचड़ का बहाव और इसकी खोज १८५० ई. में की गई थी | १८७० में चीन के एक कप्तान याप अहालोई ने इस द्वीप को पहली बार बसाया और इसे रहने योग्य बनाया | शहर को बसाने के लिए इसे आग और तूफान से सुरक्षित रखना जरूरी था जिसका समुचित उपाय किया गया | सन १८८० में सेलंगोर राज्य की राजधानी क्लेंग की जगह कुआलालंपुर को बनाया गया और १८९६ में यह पूरे मलय राज्य की राजधानी हो गई | पूरा मलय राज्य पहले ब्रिटिश- उपनिवेश था जिसे ३१ अगस्त १९५७ को आजादी मिली | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद १९६३ में कुआलालंपुर को विधिवत स्वतंत्र-राज्य की राजधानी घोषित किया गया | आज यह शहर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक विकसित और खुबसूरत शहर है, जहाँ १९९० से अंतर्राष्ट्रीय खेल-स्पर्धाओं का लगातार आयोजन हो रहा है | १९९८ में यहाँ कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के साथ ही विश्वस्तरीय कार रेसिंग स्पर्धा का भी आयोजन हुआ था |
कुआलालंपुर का विस्तार २४२.६५ वर्ग किलोमीटर है और ग्रेटर कुआलालंपुर का प्रसार ३६० वर्ग किलोमीटर है | शहर सेलंगोर राज्य के मध्य भाग में स्थित है | घाटी के पूर्व भाग में टीटीवांगसा पर्वत श्रेणियाँ है | मलेशिया प्रायद्वीप के पश्चिमी समुद्र तट का भाग काफी चौड़ा और समतल है | इसके पूर्वी समुद्र तट का भाग बढ़ा हुआ होने का कारण इस नगर का विस्तार और विकास बड़ी तेजी से हुआ है | पश्चिम में स्ट्रेट ऑफ मलक्का के अलावा उत्तर-दक्षिण में काफी विस्तारित पर्वत श्रृंखलाएँ है | क्लेंग और गोम्बोक नाम की दो नदियाँ शहर के मध्य भाग में एक साथ बहती हैं | कुआलालंपुर की सुरक्षा पूर्व में यदि टीटीवांगसा की पर्वत श्रेणियाँ करती है, तो वहीं पश्चिम में इंडोनेशिया का सुमात्रा द्वीप प्रहरी बनकर रहता है | यहाँ के लोग बातचीत में मलय भाषा 'बहासा मेलायु' का प्रयोग करते है |वैसे यहाँ अंग्रेजी, मंदारिन और तमिल भी बहुतायत में बोली जाती है | इसके अलावा भी कई बोलियाँ बोली जाती है |
इस शहर के अन्य नगरों के मुकाबले मौसम अधिक उष्ण रहता है, तथा वर्षा भी अधिक होती है | कई कारणों से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने के बावजूद इसे एक स्वास्थ्यप्रद वातावरण वाला शहर माना जाता है | इस कारण सैलानी यहाँ बारहों मास आते रहते हैं| दिन का तापमान ३१.३३ डिग्री सेंटीग्रेड और रात का तापमान २२.२३ होता है | तापमान अगर अधिकतम ३७ डिग्री सेंटीग्रेड होता है तो न्यूनतम १९ होता है | वर्षा अधिक होने के बाद भी आती रहती है | झुलसाने वाली गर्मी के चलते उमस भी बहुत होती है |भारतीय पर्यटक यहाँ के लिए अगर मार्च-जून को श्रेष्ठ मानते हैं, तो वहीं अरब के लोग जून-सितम्बर को |
गाइड के इस वार्ता-क्रम में बस अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थी | मैं उनकी बातें भी सुन रही थी और खिड़की से भागती सुन्दर दृश्यावलियों का अवलोकन भी कर रही थी | इन गुजरते-भागते दृश्यों में पर्वतीय-विस्तार के साथ ही क्लेंग घाटी की मनमोहक हरितिमा भी शामिल थी | ऊंची-नीची सड़कों पर चढ़ती-उतरती बस सही तौर पर हमें झूले का आनंद दे रही थी | दृष्टी-पथ में समतल मैदानों के खेत, जिसमें धान की हरी-हरी फसलें लहलहा रही थीं, मन को अलौकिक सुषमा की गहराईयों में उतारती जा रही थी |
जहाँ तक कुआलालंपुर का सवाल है, इसकी कुल आबादी १.६ मिलियन है, लेकिन ग्रेटर कुआलालंपुर की आबादी ७.२ मिलियन तक पहुँच गई है | ऐतिहासिक शहर होने के नाते पुराने स्थापत्य और कलाकृतियाँ यहाँ संग्रहित हैं | पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में इन्हें अद्वितीय होने का गौरव प्राप्त है | लगभग ५०० साल पहले मलक्का की तरह यहाँ भी व्यापारियों और पर्यटकों की सभा-बैठक होती थी | वह परंपरा आज भी जीवंत है | इसी कारण कुआलालंपुर को आधुनिकता और ऐतिहासिकता का संधि-स्थल भी कहा जाता है | इस नगर की समृद्धि में पर्यटक का मुख्य योगदान है, इस कारण इसे मलेशिया की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है | शहर को बहुमुखी विकास के तहत नियोजित किया गया है और यहाँ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के मुख्यालय भी हैं | यहाँ की शिल्पकला पर प्राचीनता का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है | इस क्रम में हमारी बस एक मस्जिद के सामने रुकी, जो संगई क्लेंग और संगई गोम्बोक दो नदियों के संगम पर स्थित है | गाइड के अनुसार मस्जिद का निर्माण लगभग १०० साल पहले १९०७ में हुआ था | मस्जिद जामेक मस्जिद के नाम से पूरे मलेशिया में प्रसिद्ध है और बाहर-बाहर से इसका ढांचा उत्तर भारत की मस्जिदों जैसा नजर आता है | इसके शिल्पकार आर्थर वेनसिन हुब्बोक भी उत्तर भारत के ही हैं | मस्जिद के गुम्बदों और मीनारों की दीवारें इंटों से बनी हैं और वृतखंडों और खम्बों की दीवारों पर सुन्दर मीनाकारी देखने को मिलती है | गुम्बद ७० फीट की ऊँचाई पर स्थित है और प्रार्थनागार बहुत बड़ा है | जब तक १९६५ में राष्ट्रीय मस्जिद का निर्माण नहीं हुआ था, तब तक इसे मलेशिया की सबसे बड़ी मस्जिद होने का गौरव प्राप्त था |
आगे हमें एक और मस्जिद देखने को मिली, जिसका निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में हुआ है और मस्जिद इण्डिया कहकर पुकारा जाता है | मस्जिद तीन मंजिला है और गुम्बद की आकृति प्याज जैसी है | ऐसा लगता है जैसे कोई छतरी खोलकर लगा दी हो | मस्जिद की वृतखंड खिड़कियों का निर्माण इस्लामिक शैली में हुआ है | १८६३ में इस भव्य निर्माण के पहले यह किसी झोपड़ी की शक्ल में थी | मस्जिद में करीब ३५०० नमाजी एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं | पहली मंजिल पर पुरुष नमाज पढ़ते हैं और दूसरी पर महिलायें | मस्जिद के अवलोकन के बाद हमने यात्रा के अगले क्रम में मोनों ट्रेन चलते हुए देखा जो १३ विभिन्न स्टेशनों से गुजरती है | बस से गुजरते हुए हमने यहाँ की गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के भी दर्शन किये, जिन पर इस्लामिक स्थापत्य कला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है | पूरे नगर को आधुनिक बनाने में व्यवस्थापकों ने कोई कोर-कसर नहीं छोडी है | इसकी भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहाँ ६० से भी ज्यादा आधुनिक शापिंग मॉल निर्मित किये गए हैं | जितने शानदार यहाँ के मॉल है, उतने ही शानदार यहाँ के होटल और रेस्तरां भी हैं |
हमारी बस का अगला पड़ाव किंग-पैलेस था | स्थानीय भाषा में इसे इस्ताना नेगारा कहते हैं |बाहर-बाहर ही महल की भव्यता किसी को भी चमत्कृत कर सकती है | सुन्दर छायादार वृक्षों के बीच में इस विशाल महल की स्थिति और भी शानदार लगती है | महल के चारों दिशाओं में अत्यंत सुन्दर उद्यान की रचना की गई है | हमें दु:ख तब हुआ जब यह बताया गया कि महल में पर्यटकों का प्रवेश वर्जित है | महल के चारों तरफ जालियाँ लगी है, जिनसे महल की शोभा बाहर से देखी जा सकती है | मलय राजा, जिन्हें स्थानीय भाषा में यांग डीपरत्वान एगोंग कहा जाता है, का निवास स्थान भी यही है | महल देखकर मुझे अपने हैदराबाद का राजभवन याद आ गया | यात्रा के इसी क्रम में हमने यहाँ के राष्ट्रीय स्मारक-चिह्न के भी दर्शन किये, जो के. एल. लेक गार्डनों की ओर पार्लियामेंट हाउस के समीप स्थित है | इसे मलय भाषा में टिगु नेगारा कहते हैं और इसका निर्माण उन स्वतंत्रता-संग्राम सेनानियों की स्मृति में किया गया है, जो वीरता पूर्वक देश की आजादी के लिए शहीद हुए थे | इसके आर्किटेक्ट प्रसिद्ध मूर्तिकार, जिन्होंने वाशिंगटन डी.सी.में प्रसिद्ध आई. डबल्यू. ओ. जीमा स्मारक की रचना की थी, फेलिक्स डे वेल्डन थे | स्मारक की भव्यता ने पूरे यात्री दल को मंत्र-मुग्ध कर दिया था |
यहीं एक कीर्ति-स्तम्भ भी है जो देश के प्रतापी योद्धाओं को समर्पित है | थोडा आगे जाने पर एक चबूतरे पर सात वीर योद्धाओं की आदमकद प्रतिमाएँ स्थापित हैं, मूर्तियाँ कांस्य निर्मित है और विशिष्ट लक्षणों से युक्त होने के कारण इनकी ख्याति पूरे विश्व में है | इससे सटे उद्यान में हमने परिभ्रमण का आनंद तो लिया ही, हमने यहाँ की पार्लियामेंट की शानदार बिल्डिंग भी देखी |
इसी क्रम में हमने पूरे मलेशिया और कुआलालंपुर में ख्याति प्राप्त कुछ स्थल भी देखे | इनमें सर्वाधिक मान्यता प्राप्त दातारण मेर्डेका भी शामिल है, जिसे मेर्डेका स्क्वायर या इंडिपेंडेंस स्क्वायर कहकर भी पुकारा जाता है | यह स्थान स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है और अब्दुल समाद बिल्डिंग के सामने स्थित है | स्थानीय भाषा में 'मेर्डेका' का अर्थ आजादी है | पहली बार ३१ अगस्त १९५७ को तत्कालीन प्रधान मंत्री टुंकु अब्दुल रहमान ने इसी स्थान पर मलेशिया का राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर ब्रिटिश शासन से मुक्ति की घोषणा की थी | यह स्मारक प्रतीक रूप में आजादी की उसी स्मृति को समर्पित है | इसकी खासियत यह है कि १०० मीटर ऊँचे खम्बे पर यहाँ मलेशिया का राष्ट्रध्वज फहरता है, जो विश्व की सबसे बड़ी ऊँचाई मानी जाती है | हरी-भरी मखमली घास, चबूतरों और फव्वारों से सुसज्जित यह स्थान किसी मनोरम उद्यान जैसा लगता है | गाइड ने बताया कि मलेशिया के सभी राष्ट्रीय आयोजन इसी स्थल पर होते हैं | इसके नजदीक ही रॉयल सेलांगोर क्लब जो मोक ट्यूडर भवन का प्रतिरूप है जिसकी ख्याति पूरे मलेशिया में है, भवन की स्थापना यूँ तो सन १८८४ में की गई थी। इसकी छत तब घास-फूस के छप्पर की थी और आकृति का निर्माण काष्ठ-फलकों से किया गया था, लेकिन अब यह एक उत्कृष्ट स्थापत्य के रूप में प्रतिष्ठित है |
मलेशिया की यात्रा करने वाला प्रत्येक पर्यटक उन टॉवरों को अवश्य देखना चाहता है, जिसकी प्रसिद्धि पूरी दुनिया में है | अत: हमने भी इस सौभाग्य से अपने को वंचित रखना उचित नहीं समझा | अपनी नींव की गहराई के कारण इन टॉवरों की गणना पूरी दुनिया में पहले नंबर पर की जाती है | इसका निर्माण मलेशिया के कुआलालंपुर शहर के मध्य में किया गया है और यह इस्लामी कला का उत्कृष्ट नमूना है | इसका निर्माण १९९२-१९९८ में किया गया है | इन टॉवरों की ऊंचाई मीनार के साथ ४५१.९ मीटर है और गहराई में १२० मीटर तक नीचे धसें हैं | ८८ मंजिलों में विभाजित इन ट्विन टॉवरों की गिनती विश्व के मान्य स्तूपों में की जाती है | इसका अध्यारोपण दो चतुर्भुजों पर किसी अष्टकोणीय तारे की शक्ल में किया गया है | अष्टकोण एवं अष्टअर्धवृत में निर्मित यह दोनों टॉवर अनुपम कला शैली के उदाहरण माने जा सकते हैं, जिसका निर्माण पश्चिमी और पूर्वी देशों के कलाकारों ने मिलकर किया है | इन टॉवरों की विशालता, विराटता और व्यापकता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यह ८८ मंजिलों में विभाजित है और दोनों टॉवरों में ऊपर चढ़ने के लिए ७६५ सीढ़ियाँ और २९ लिफ्टें हैं | भूमिगत मंजिल से पाँचवी मंजिल तक कार पार्किंग बनाई गई है, जिनमें एक साथ ५४०० कारें खड़ी की जा सकती है | इसकी ४१ वें मंजिल पर एक ५८.४ मीटर लम्बा स्काई ब्रिज है | इनसे जुड़ी हुई छोटी इमारत टॉवर के ४४ वीं मंजिल के ही समकक्ष पहुँचती है | टॉवरों में के. एल. सी. सी. शॉपिंग मॉल, पाँच सितारा होटल और पार्क तथा मस्जिद भी बने हुए हैं | इस टॉवर से रूबरू होने के बाद मेरा मन इसके प्रत्येक भाग-संभाग का निरीक्षण करने को व्याकुल था, लेकिन बाध्यता समय की थी | मन मसोस कर हमें वापस आना पड़ा | यह मेरी क्रूज यात्रा का अंतिम पड़ाव था | घर वापसी के बाद भी मेरे मन में यह कचोट बनी रही कि जितना कुछ देखा उसे संतोष ही कहा जा सकता है | मन में यह विचार अभी तक बना है कि अगर अवसर मिला तो पूर्वी एशिया के इन द्वीपों की यात्रा, जो भारतीय संस्कृति की झलक लिए हुए हैं, एक बार फिर करूँगी |
संपत देवी मुरारका
हैदराबाद